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Monday 7 May 2012

चले चतुर चौकन्ने चौकस -

श्वेत कनपटी तनिक सी, मुखड़ा गोल-मटोल ।
नई व्याहता दोस्त की, खिसकी अंकल बोल ।
चले चतुर चौकन्ने चौकस ।|

केश रँगा मूंछे मुड़ा, चौखाने की शर्ट |
अन्दर खींचे पेट को, अंकल करता फ्लर्ट |
मिली तवज्जो फिर तो पुरकस ||


धुर-किल्ली ढिल्ली हुई, खिल्ली रहे उड़ाय |
जरा लीक से हट चले, डगमगाय बलखाय |
रहा सालभर चालू सर्कस ||

दाढ़ी मूंछ सफ़ेद सब, चश्मा लागा मोट ।
इक अम्मा बाबा कही, सांप कलेजे लोट ।
बैठ निहारूं खाली तरकस ।।

3 comments:

  1. बुढापा किसी से कम थोड़े ही होता है?!...सहज हास्य की बौछार!...आभार!

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  2. अनुप्रास और हास्य ....!

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  3. चचा कहूँ, अंकल कहूँ आप कहें क्या मैं क्या कहूँ.. मज़ा आ गया बस कहूँ तो क्या कहूँ!!

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