आखिर क्यों :आसान नहीं रहता है औरतों का कामानन्द प्राप्त होना
Virendra Kumar Sharma
क्रीड़ा-हित आतुर दिखे, दिखे परस्पर नेह | पहल पुरुष के हाथ में, सम्पूरक दो देह | सम्पूरक दो देह, मगर संदेह हमेशा | होय तृप्त इत देह, व्यग्र उत रेशा रेशा | भाग चला रणछोड़, बड़ी देकर के पीड़ा | बनता कच्छप-यौन, करे न छप छप क्रीड़ा || माहिरों की राय : आसान नहीं रहता है औरतों का कामानन्द को प्राप्त होना आखिर क्यों ?
Virendra Kumar Sharma
गोरी *गोही आदतन, द्रोही हरदम मर्द |
गर्मी पल में सिर चढ़े, पल दो पल में सर्द | पल दो पल में सर्द, दर्द देकर था जाता | करता था बेपर्द, रहा हर वक्त सताता | बदली सबला रूप, खींच कर रखती डोरी | होय श्रमिक या भूप, नचा सकती है गोरी ||
*छुपा कर रखने में सक्षम
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Saturday 30 November 2013
बदली सबला रूप, खींच कर रखती डोरी-
Friday 29 November 2013
आ जा भारत रत्न, कांबळी रस्ता नापे
काम्बली की ओर से-
खा के झटका मित्र से, दिल का दौरा झेल |
जिस भी कारण से हुई, हुई दोस्ती फेल |
हुई दोस्ती फेल, कलेजा फिर से काँपे |
आ जा भारत रत्न, कांबळी रस्ता नापे |
हुई दोस्त से भूल, माफ़ करदे अब आ के |
लागे व्यर्थ कलंक, अकेले पार्टी खा के ||
Thursday 28 November 2013
खाये घर की दाल, मजे ले अक्सर रविकर-
करमहीन नर हैं सुखी, कर्मनिष्ठ दुःख पाय |
बैठ हाथ पर हाथ धर, खुद लेता खुजलाय |
खुद लेता खुजलाय, स्वयं पर रखें नियंत्रण |
दे कोई उकसाय, चले ठुकराय निमंत्रण |
टाले सकल बवाल, रहे मुर्गी से बचकर |
खाये घर की दाल, मजे ले अक्सर रविकर ||
नहीं छानना ख़ाक, बाँध कर रखो लंगोटा
केले सा जीवन जियो, मत बन मियां बबूल |
सामाजिक प्रतिबंध कुल, दिल से करो क़ुबूल |
दिल से करो क़ुबूल, अन्यथा खाओ सोटा |
नहीं छानना ख़ाक, बाँध कर रखो लंगोटा |
दफ्तर कॉलेज हाट, चौक घर मेले ठेले |
रहो सदा चैतन्य, घूम मत कहीं अकेले |
Sunday 24 November 2013
रंग धर्म क्षेत्रीयता, पद मद के दुष्कृत्य
कुंडलियां
(१)
मानव समता पर लगे, प्रश्न चिन्ह सौ नित्य ।
रंग धर्म क्षेत्रीयता, पद मद के दुष्कृत्य ।
पद मद के दुष्कृत्य , श्रमिक रानी में अंतर ।
प्राण तत्व जब एक, दिखें क्यूँ भेद भयंकर ।
रविकर चींटी देख, कभी ना बनती दानव ।
रखे परस्पर ख्याल, सीख ले इनसे मानव ॥
(२)
बड़ा स्वार्थी है मनुज, शक्कर खोपर चूर ।
चींटी खातिर डालता, शनि देते जब घूर ।
शनि देते जब घूर, नहीं तो लक्ष्मण रेखा ।
मानव कितना क्रूर, कहीं ना रविकर देखा ।
कर्म-योगिनी श्रेष्ठ, नीतिगत बंधन तगड़ा ।
रखें चीटियां धैर्य, व्यर्थ ना जाँय हड़बड़ा ॥
Friday 22 November 2013
नीति-नियम में लोच, कोर्ट इनको फटकारे-
मुआवजा नहि वेवजह, पीछे घातक सोच |
खैरख्वाह इक वर्ग के, नीति-नियम में लोच |
नीति-नियम में लोच, कोर्ट इनको फटकारे |
इन्हें नहीं संकोच, दूसरा वर्ग नकारे |
जो जो खाया चोट, इन्हें दे रहा बद्दुआ |
कह इमाद रहमान, होय या लीडर रमुआ ||
Thursday 21 November 2013
चूर चूर विश्वास, किया क्या हाय शाजिया -
रखे ताजिया *जिया का, भैया अपने आप |
अविश्वास रविकर नहीं, पर करता है बाप |
पर करता है बाप, रही छवि अब ना उजली |
कीचड़ में ही कमल, हाथ में चालू खुजली |
चूर चूर विश्वास, किया क्या हाय शाजिया |
अंतर दिया मिटाय, कहाँ हम रखें ताजिया ||
*दीदी
Tuesday 19 November 2013
जिन्दा भारत-रत्न मैं, मैं तो बसूँ विदेश -
जिन्दा भारत-रत्न मैं, मैं तो बसूँ विदेश |
पता नहीं यह मीडिया, खुलवा दे क्या केस |
खुलवा दे क्या केस, करूँगा खुल के मस्ती |
नहीं किसी को क्लेश, मटरगस्ती कुछ सस्ती |
बना दिया भगवान्, करूं क्यूँकर शर्मिंदा |
बनकर मैं इंसान, चाहता रहना जिन्दा ||
सचिन घोंसला व्यग्र, अंजली अर्जुन सारा-
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स्वार्थ हमारा ले रहा, पिच दर पिच आनंद |
प्रतिपल के उन्माद में, तथ्य भूलते चन्द |
तथ्य भूलते चन्द, महामानव है बन्दा |
रेफलेक्सेज नहिं मंद, गगन छू चुका परिंदा |
सचिन घोंसला व्यग्र, अंजली अर्जुन सारा |
बच्चों का अधिकार, छीनता स्वार्थ हमारा ||
चौबिस वर्षों तक जमा, रहा जमाना ताक-
बहा नाक से खून पर, जमा पाक में धाक |
चौबिस वर्षों तक जमा, रहा जमाना ताक |
रहा जमाना ताक, टेस्ट दो सौ कर पूरे |
कर दे ऊँची नाक, बहा ना अश्रु जमूरे |
चला मदारी श्रेष्ठ, दिखाके करतब नाना |
ले लेता संन्यास, उम्र का करे बहाना |।
Sunday 17 November 2013
बोलो सतत असत्य, डूब के खोजो मोती-
(1)
होती जिनसे चूक है, कहते उन्हें उलूक |
होती जिनसे चूक है, कहते उन्हें उलूक |
असत्यमेव लभते सदा, यदा कदा हो चूक |
यदा कदा हो चूक, मूक रह कर के लूटो |
कह रविकर दो टूक, लूट के झटपट फूटो |
बोलो सतत असत्य, डूब के खोजो मोती |
व्यवहारिक यह कथ्य, सदा जय इससे होती ||
(2)
(2)
कहे कुटुंबी कहकहे, अपना ही जनतंत्र |
पितामहे मातामहे, लूटामहे सुमंत्र |
लूटामहे सुमंत्र, राज का तंत्र अनोखा |
खुद को छप्पनभोग, आम पब्लिक को चोखा |
चुन लेते सर नेम, लिस्ट यह काफी लम्बी |
यही लूट का गेम, आज फिर कहे कुटुम्बी ||
पितामहे मातामहे, लूटामहे सुमंत्र |
लूटामहे सुमंत्र, राज का तंत्र अनोखा |
खुद को छप्पनभोग, आम पब्लिक को चोखा |
चुन लेते सर नेम, लिस्ट यह काफी लम्बी |
यही लूट का गेम, आज फिर कहे कुटुम्बी ||
Saturday 16 November 2013
मोदी छीने स्वाद, नमक भिजवाना भूला-
भूला रोटी प्याज भी, अब मिलती ना भीख |
नमक चाट कर जी रहे, ले तू भी ले चीख |
ले तू भी ले चीख, चीख पटना में सुनकर |
हुआ खफा गुजरात, हमें लगता है रविकर |
राहुल बाँटे अन्न, सकल जनतंत्र कबूला |
मोदी छीने स्वाद, नमक भिजवाना भूला ||
Friday 15 November 2013
अंग अंग दे बेंच, देख रविकर का बूता-
खलियाना खलता नहीं, चमड़ी धरो उतार |
मँहगाई की मार से, बेहतर तेरी मार |
बेहतर तेरी मार, बना के पहनो जूता |
अंग अंग दे बेंच, देख रविकर का बूता |
जीना हुआ मुहाल, भला है बूचड़-खाना -
झटका अते हलाल, शुरू कर तू खलियाना ||
Wednesday 13 November 2013
सट्टेबाजी में लगा, खलनायक रंजीत-
cbi निदेशक का विवादास्पद बयान, सट्टेबाजी की तुलना रेप से की
सट्टेबाजी में लगा, खलनायक रंजीत |
कानूनी जामा पहन, मिटटी करे पलीत |
मिटटी करे पलीत, जबरदस्ती की आफत |
करिये फिर भी मौज, अगर दुष्कर्मी सोहबत |
है अकाट्य यह तर्क, आज तो चख दे फ़ट्टे |
मिटा दिया जब फर्क, लगाओ खुलकर सट्टे ||
Monday 11 November 2013
चला कटारी घोप, हिन्दु हूँ इत्तेफाक से-
शिक्षा से क्रिश्चियन हूँ, रोप दिया यूरोप |
संस्कार से मुसलमाँ, चला कटारी घोप |
चला कटारी घोप, हिन्दु हूँ इत्तेफाक से |
इसीलिए तो कोप, डुबाता हूँ खटाक से |
राष्ट्रवाद बकवास, नीतियां ले भिक्षा से |
चरा दिया तो देश, विदेशी ऋण, शिक्षा से ||
Friday 8 November 2013
पुन: मुज्जफ्फर नगर, करूँ क्यूँकर अनुशंसा-
(१)
बारी बारी से करें, दरबारी स्तुतिगान |
गरिमा से गणतंत्र की, खेल रहे नादान |
खेल रहे नादान, अधिकतर गलतबयानी |
खानदान वरदान, सयानी रविकर रानी |
कई पालतू सिंह, पाय के मनसबदारी ।
जी हुजूर आदाब, बजाते कुल- दरबारी ।
(२)
मंशा पर करते खड़े, क्यूँ आयोग सवाल ।
भल-मन-साहत देखिये, देख लीजिये चाल ।
देख लीजिये चाल, चार पन्ने का उत्तर ।
होता मुन्ना पास, मिले शाबाशी पुत्तर ।
पुन: मुज्जफ्फर नगर, करूँ क्यूँकर अनुशंसा ।
उधर इरादा पाक, इधर इनकी जो मंशा ॥
Tuesday 5 November 2013
लिया पाक से बीज, खाद ढाका से लाये-
खीरा-ककड़ी सा चखें, हम गोली बारूद |
पचा नहीं पटना सका, पर अपने अमरूद |
पर अपने अमरूद, जतन से पेड़ लगाये |
लिया पाक से बीज, खाद ढाका से लाये |
बिछा पड़ा बारूद, उसी पर बैठ कबीरा |
बने नीति का ईश, जमा कर रखे जखीरा ||
नक्सल आतंकी कहीं, फिर ना जायें कोप |
नक्सल आतंकी कहीं, फिर ना जायें कोप |
शान्ति-भंग रैली करे, सत्ता का आरोप |
सत्ता का आरोप, निभाता नातेदारी |
विस्फोटक पर बैठ, मस्त सरकार बिहारी |
दशकों का अभ्यास, सँभाले रक्खा भटकल |
रैली से आतंक, इलेक्शन से हैं नक्सल ||
कीचड़ तो तैयार, कमल पर कहाँ खिलेंगे ??Tuesday, 30 July 2013
Tuesday, 30 July 2013
खिलें इसी में कमल, आँख का पानी, कीचड़
कीचड़ कितना चिपचिपा, चिपके चिपके चक्षु |
चर्म-चक्षु से गाय भी, दीखे उन्हें तरक्षु |
दीखे जिन्हें तरक्षु, व्यर्थ का भय फैलाता |
बने धर्म निरपेक्ष, धर्म की खाता-गाता |
कर ले कीचड़ साफ़, अन्यथा पापी-लीचड़ |
खिलें इसी में कमल, आँख का पानी, कीचड़ |
चर्म-चक्षु=स्थूल दृष्टि
तरक्षु=लकडबग्घा
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कमल खिलेंगे बहुत पर, राहु-केतु हैं बंकु |
चौदह के चौपाल की, है उम्मीद त्रिशंकु | है उम्मीद त्रिशंकु, भानुमति खोल पिटारा | करे रोज इफ्तार, धर्म-निरपेक्षी नारा | ले "मकार" को साध, कुशासन फिर से देंगे | कीचड़ तो तैयार, कमल पर कहाँ खिलेंगे ??
*Minority
*Muthuvel-Karunanidhi
*Mulaayam
*Maayaa
*Mamta
|
Monday 4 November 2013
विस्फोटक पर बैठ, मस्त सरकार बिहारी-
नक्सल आतंकी कहीं, फिर ना जायें कोप |
शान्ति-भंग रैली करे, सत्ता का आरोप |
सत्ता का आरोप, निभाता नातेदारी |
विस्फोटक पर बैठ, मस्त सरकार बिहारी |
दशकों का अभ्यास, सँभाले रक्खा भटकल |
रैली से आतंक, इलेक्शन से हैं नक्सल ||
खीरा-ककड़ी सा चखें, हम गोली बारूद |
पचा नहीं पटना सका, पर अपने अमरूद |
पर अपने अमरूद, जतन से पेड़ लगाये |
लिया पाक से बीज, खाद ढाका से लाये |
बिछा पड़ा बारूद, उसी पर बैठ कबीरा |
बने नीति का ईश, जमा कर रखे जखीरा ||
Saturday 2 November 2013
धोते "रविकर" पाप, आज गर बापू होते -
बापू होते खेत इत, भारत चाचा खेत |
सेत-मेत में पा गए, वंशावली समेत |
वंशावली समेत, समेंटे सत्ता सारी |
अहंकार कुल छाय, पाय के कुल-मुख्तारी |
"ताल-कटोरा" आय, लगाते घोंघे गोते |
धोते "रविकर" पाप, आज गर बापू होते -
पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक-रविकर
पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक |
वली-वलीमुख अवध में, सबके प्रभु तो एक |
सब के प्रभु तो एक, उन्हीं का चलता सिक्का |
कई पावली किन्तु, स्वयं को कहते इक्का |
जाओ उनसे चेत, बनो मत मूर्ख गावदी |
रविकर दिया सँदेश, मिठाई पाव पाव दी ||
वली-वलीमुख = राम जी / हनुमान जी
पावली=चवन्नी
गावदी = मूर्ख / अबोध
Friday 1 November 2013
डरे सुपारी से अगर, कैसे होय सुपार |
डरे सुपारी से अगर, कैसे होय सुपार |आज मरे या कल मरे, ये तो देंगे मार |
ये तो देंगे मार, जमाना दुश्मन माना |शायद टूटे तार, किन्तु छोड़े क्यूँ गाना |
दीवाना यह देश, देखता राह तुम्हारी |जीतोगे तुम रेस, आप से डरे सुपारी ||
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