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Thursday, 27 June 2013

उत्तरीय उतरे उमड़, उलथ उत्तराखंड --

नमन नमस्ते नायकों, नम नयनों नितराम-

 (1)
नमन नमस्ते नायकों, नम नयनों नितराम |
क्रूर कुदरती हादसे, दे राहत निष्काम  |
दे राहत निष्काम, बचाते आहत जनता |
दिए बगैर बयान, हमारा रक्षक बनता |
अमन चमन हित जान, निछावर हँसते हँसते |
भूले ना एहसान, शहीदों नमन नमस्ते -
 (2)
 उत्तरीय उतरे उमड़, उलथ उत्तराखंड |
कुदरत का कुत्सित कहर, देह भुगत ले दंड |

देह भुगत ले दंड, हुवे रिश्ते बेमानी |
पानी का बुलबुला, हुआ है पानी पानी |

क्या गंगा आचमन, चमन सम्पूर्ण प्रस्तरी |
चालू राहतकार्य,  उत्तराभास उत्तरी ||

 उत्तराभास=अंड-बंड उत्तर / दुष्ट उत्तर 
(३)
 

ज़िंदा लेते लूट, लाश ने जान बचाई -

खानापूरी हो चुकी, गई रसद की खेप । 
खेप गए नेता सकल, बेशर्मी भी झेंप । 

बेशर्मी भी झेंप, उचक्कों की बन आई । 
ज़िंदा लेते लूट, लाश ने जान बचाई । 

भूखे-प्यासे भटक, उठा दुनिया से दाना ।
लाशें रहीं लटक, हिमालय मुर्दाखाना ॥
(४)
सन्नाटा पसड़ा पड़ा, सड़ता हाड़ पहाड़ |
कलरव कल की बात है, गायब सिंह दहाड़ |  


गायब सिंह दहाड़, ताड़ अब कारस्तानी |
कुदरत से खिलवाड़, करे फिर पानी-पानी |  


सुधरो नहीं सिधार, खाय झापड़ झन्नाटा |
मद में माता मनुज, सन्न ताके सन्नाटा ||
(५)
 फेंकू का धत फोबिया, व्याधि व्यथा विकराल |
राल घोंटते गान्धिभक्त, है चुनाव का साल |

है चुनाव का साल, विदेशी दौरे छोड़े |
चले अढाई कोस, नहीं नौ दिन हैं थोड़े |

बेतरतीब विकास, गधह'रा हुल'के रेंकू |
किसका वह व्यक्तव्य, मीडिया असली फेंकू ||


श्लेष अलंकार पहचाने
गधह'रा हुल'के = बच्चे रेंकने के लिए हुलकते हैं 
(६)
 
नंदी को देता बचा, शिव-तांडव विकराल । 
भक्ति-भृत्य खाए गए, महाकाल के गाल । 
 
महाकाल के गाल, महाजन गाल बजाते । 
राजनीति का खेल, आपदा रहे भुनाते । 
 
आहत राहत बीच, चाल चल जाते गन्दी । 
हे शिव कैसा नृत्य, बचे क्यूँ नेता नंदी ॥

Thursday, 6 June 2013

आँखे ताकें रोटियां, दंगा करते दाँत

जिभ्या के बकवाद से, भड़के सारे दाँत |
मँहगाई के वार से, सूखे छोटी आँत || 

आँखे ताकें रोटियां, दंगा करते दाँत । 
जिभ्या पूछे जात तो, टूटे दायीं पाँत ||

मतनी कोदौं खाय  के, माथा घूमें जोर |
सर-साहब मदहोश हैं, नहीं व्यर्थ झकझोर ||

हाथों के सन्ताप से, बिगड़ गए शुभ काम |
मजदूरी पावे नहीं,  पड़े चुकाने दाम ||

पाँव भटकने लग पड़े, रोजी में भटकाव |
चले कमाई के लिये, छोड़-छाड़ के गाँव ||

Wednesday, 5 June 2013

दोहन हनन समान तब, जब मनमोहन मौन-

दोहन हनन समान तब, जब मनमोहन मौन |
हनवाना हरदिन करे, रोक सकेगा कौन |

रोक सकेगा कौन, स्वयं कुदरत कुछ कर दे |
करे स्वयं संतुलित, स्वयं कुछ ऐसा वर दे |

सत्ता पाए शक्ति, सुधारे खुद के गोहन |
रोके बन्दर बाँट, तभी रुक पाए दोहन ||