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Wednesday, 20 March 2013

पहलवान हो गधा, बाप अब कहे सियासत -


सन्देश: 31 मार्च तक ब्लॉग जगत से दूर हूँ-रविकर 
शुभ-होली
बेचारा रविकर फँसा,  इक टिप्पण आतंक ।

जैसे बैठा सिर मुड़ा, ओले पड़ते-लंक ।  



ओले पड़ते-लंक, करुण कर गया हिमाकत ।

पहलवान हो गधा, बाप अब कहे सियासत



बेनी जाती टूट,  किंवारा खुलता सारा ।

दिखता पर्दा टाट,  हुआ चारा बे-चारा ।


मुर्दा मुद्दा जिया, हिलाता देश तमिलियन

मिलियन घपले से डिगी, कहाँ कभी सरकार । 
दंगे दुर्घटना हुवे, अति-आतंकी मार । 
अति-आतंकी मार, ख़ुदकुशी कर्जा कारण । 
मँहगाई भुखमरी, आज तक नहीं निवारण । 
काला भ्रष्टाचार, जमा धन बाहर बिलियन । 
मुर्दा मुद्दा जिया, हिलाता देश तमिलियन ॥  

(3)
हलके में घुस कर करे, मछुवारों का क़त्ल |
कातिल इटली जा बसे, नहीं दिखाते शक्ल |
नहीं दिखाते शक्ल, अक्ल सत्ता गुम जाए |
राजदूत पर रोब, इधर सरकार दिखाए |
यू पी ए की बॉस, डपटती खूब टहल के |
जल्दी वापस भेज, हमें ना लेना हलके ||

Tuesday, 19 March 2013

हे नीरजा भनोट, तुम्हारी जय हो जय जय-

आधुनिक भारत की एक वीरांगना जिसने इस्लामिक आतंकियों से लगभग 400 यात्रियों की जान बचाते हुए अपना जीवन बलिदान कर दिया।

भारत योगी 

जय जय जय जय नीरजा, चंडीगढ़ की शान |
गन प्वाइंट पे ले चुके, आतंकी इक यान  |

आतंकी इक यान, सभी की जान बचाती |
डाक टिकट सम्मान, शहादत देकर पाती |

यह सच्ची आदर्श, कर्म कर जाती निर्भय |
हे नीरजा भनोट, तुम्हारी जय हो  जय जय ||

Thursday, 14 March 2013

मौज करो दो साल, नहीं तू बालिग बेटा-

(1)
लड़का कालेज छोड़ता, भाँप रिस्क आसन्न |
क्लास-मेट को हर समय, करना पड़े प्रसन्न |

करना पड़े प्रसन्न, धौंस हर समय दिखाती |
काला चश्मा डाल,  केस का भय दिखलाती |

है इसका क्या तोड़, रोज देती हैं हड़का |
लूंगा आँखे फोड़, आज बोल है लड़का ||
(2)

बेटा भूलो नीति को, काला चश्मा डाल । 
दुनिया के करते चलो, सारे कठिन सवाल । 

 
सारे कठिन सवाल, भोग सहमति से करना । 
पूछ उम्र हर हाल, नहीं तो करना भरना । 

संस्कार जा भूल, पडेगा नहीं चपेटा । 
मौज करो दो साल, नहीं तू बालिग बेटा ॥ 

 घनाक्षरी 
 सहमति संभोग हैं ,  बेशर्म बड़े लोग हैं -
पतनोमुखी योग हैं,  कानून ले आइये । 

अठारह से घटा के,  तो सोलह में पटा  के 
नैतिकता को हटा के, संस्कार भुलाइये । 

 लडको की आँख फोड़, करें नहीं जोड़ तोड़ 
कानून का है निचोड़,  रस्ता भूल जाइये । 

नीति सत्ताधारियों की,  जान सदाचारियों की,  । 
"लाज आज नारियों की, देश में बचाइये ।


वैसे भी अधिकार, धर्म-पत्नी का भाई

प्रत्युत्तर 

भाई हिस्सा बाँटकर, करते रहते मौज |
भौजी की अपनी बड़ी, लम्बी चौड़ी फौज |
 
लम्बी चौड़ी फौज, भतीजे नहीं सुहाएँ |
सौ चूल्हे कन्नौज, राग अपना ही गायें |
 
साली सरहज सार, नहीं कुछ भी बटवाई |
वैसे भी अधिकार, धर्म-पत्नी का भाई ||

Wednesday, 13 March 2013

लखिमी कय किस्मत काह बदा ??



"सेहत" से हत" भाग्य सखी सितकारत सेवत स्वामि सदा |

"कीमत" सेंदुर "की मत" पूछ, चुकावत किन्तु न होय अदा |

रंग गुलाल उड़ावत लोग उड़ावत रंग बढ़े विपदा |

लालक लाल लली लहरी लखिमी कय किस्मत काह बदा ??

  दोहे
रंग रँगीला दे जमा, रँगरसया रंगरूट |
रंग-महल रँगरेलियाँ, *फगुहारा ले लूट ||
*फगुआ गाने वाला पुरुष -


फ़गुआना फब फब्तियां, फन फ़नकार फनिंद |
रंग भंग भी ढंग से, नाचे गाये हिन्द ||

हुई लाल -पीली सखी, पी ली मीठी भांग |
  अँगिया रँगिया रँग गया, रंगत में अंगांग ||


देख पनीले दृश्य को, छुपे शिशिर हेमंत ।
आँख गुलाबी दिख रही, पी ले तनि श्रीमंत ॥

तड़पत तनु तनि तरबतर, तरुनाई तति तर्क ।
लाल नैन बिन सैन के, अंग नोचते *कर्क ॥
*केकड़ा
 
मदिरा सवैया 
नंग-धडंग अनंग-रती *अकलांत अनंद मनावत हैं ।
रंग बसंत अनंत चढ़ा शर चाप चढ़ाय चलावत हैं ।  
लाल हरा हुइ जाय धरा नभ नील सफ़ेद दिखावत हैं ।
अंग अनेकन अर्थ भरे लुकवावत हैं रँगवावत  हैं ॥
*ग्लानि-रहित

Monday, 11 March 2013

कातिल गए स्वदेश, फंसा इक और मिसाइल-

1
टली वापसी सिरों की, पाक-जियारत पूर । 
 मछुवारों के मौत का, अभी फैसला दूर । 
 
अभी फैसला दूर, मिली नहिं चॉपर फ़ाइल । 
कातिल गए स्वदेश, फंसा इक और मिसाइल । 
 
भेजे सुप्रिम-कोर्ट, देखिये बढ़ी बेबसी । 
कातिल नातेदार, नहीं देगा अब इटली ॥  
(१ )
टिली-लिली टिल्ला टिका, टिल्ले बड़ा नवीस । 
इटली के व्यवहार पर, फिर से निकली खीस । 
टिली-लिली = अंगूठा दिखाना 
टिल्ला= धक्का 
टिल्ले-नवीस = बहाने बाजी

 2

नारा की नाराजगी, जगी आज की भोर-

 नारा की नाराजगी, जगी आज की भोर । 
यह नारा कमजोर था, नारा नारीखोर । 
नारा नारीखोर, लगा सड़कों पर नारा । 
नर नारी इक साथ, देश सारा हुंकारा। 
कर के पश्चाताप, मुख्य आरोपी मारा । 
  नेता नारेबाज, पाप से करो किनारा ॥ 

काटे पादप रोज, हरेरी ज्यादा भाये-

भाये ए सी की हवा, डेंगू मच्छर दोस्त ।

फल दल पादप काटते, काटे मछली ग़ोश्त ।


काटे मछली ग़ोश्त, बने टावर के जंगल ।

टूंगे जंकी टोस्ट, रोज जंगल में मंगल ।

खाना पीना मौज, मगन मनुवा भरमाये ।

काटे पादप रोज, हरेरी ज्यादा भाये ।।

Saturday, 9 March 2013

कोताही कर्तव्य में, मांगे नित अधिकार-

मोटी चमड़ी मनुज की, महाचंट मक्कार । 
कोताही कर्तव्य में, मांगे नित अधिकार । 

मांगे नित अधिकार,  हुआ है आग-बबूला । 
बोये पेड़ बबूल, आम पर झूले झूला । 

दे दूजे को सीख, रखे खुद नीयत खोटी । 
रविकर इन्हें सुधार, मार के चपत *चमोटी ॥ 
*चाबुक 

Friday, 8 March 2013

शादी बिन बारात, बिचारी अब भी औरत-

कर इनको आजाद, अन्यथा तोड़े खूंटा -

औरत रत निज कर्म में, मिला सफलता मन्त्र ।

 सेहत से हत भाग्य पर, नरम सुरक्षा तंत्र । 

 

 

नरम सुरक्षा तंत्र, जरायम बढ़ते जाते । 

करता हवश शिकार, नहीं कामुक घबराते । 

 

 

जिन्सी ताल्लुकात, तरक्की करता भारत । 

शादी बिन बारात, बिचारी अब भी औरत ॥

Thursday, 7 March 2013

लगा वंश पर दाँव, दुखी हो जाए दादी-

दादी दिल दिखता दुखित, द्रवित दिव्यतम तेज ।
देख पार्टी की दशा, रही लानतें भेज ।

रही लानतें भेज, किया था प्राण निछावर ।
सत्ता लोलुप लोग, चाहते केवल पावर ।

कल बेटा कुर्बान, टले पोते की शादी ।
लगा वंश पर दाँव, दुखी हो जाए दादी ॥

Monday, 4 March 2013

परम-प्रताड़क प्रेम, पड़ा रविकर मरघाटा-

सन्नाटा पसरा प्रकट, अन्तर हाहाकार । 
नैना पथराते गए,  हारे हठ-हुंकार । 

हारे हठ-हुंकार, यार हुशियार निकलता । 
करे सरहदें  पार, बढ़ाता जाय विकलता । 

परम-प्रताड़क प्रेम, पड़ा रविकर मरघाटा । 
उत उमंग उत्साह,  इधर पसरा सन्नाटा ॥ 


Saturday, 2 March 2013

सुगढ़ सलोनी कई, कई में सौ विकृतियाँ-

 
 


पहला पहला यंत्र है,  इस दुनिया का चाक । 
बना प्रवर्तक यंत्र का, कुम्भकार की धाक । 
कुम्भकार की धाक, पूर्वज मुनि अगस्त्य है । 
मिटटी पावक पाक, मृत्यु पर अटल सत्य हैं । 
देता कृति आकार, रचयिता सहला सहला । 
कुम्भकार भगवान्, प्रवर्तक सबसे पहला ॥ 

मिटटी रौंधे प्रेम से, करें पुंसवन कर्म । 
गढ़े घड़े के अंग कुल, अन्दर बाहर मर्म । 
अन्दर बाहर मर्म, धर्म कुल तत्व निभाएं । 
तप-तप चक चक चर्म, अग्नि अंतर दहकाए । 
बनता पात्र सुपात्र, मगर मत मारो गिट्टी । 
संस्कार दो शेष, बना दो पावन मिटटी ॥ 

 
अगस्त्य महर्षि  कुँभारन के पुरखा पहला हम मानत भैया । 
धरती पर चाक बना पहला शुभ यंतर  लेवत  आज बलैया । 
अब कुंभ दिया चुकड़ी बनते, गति चाक बनावत अग्नि पकैया ।
जस कर्म करे जस द्रव्य भरे, गति पावत ये तस नश्वर नैया ।। 

बलुई कलकी ललकी पिलकी जल-ओढ़ सजी लटरा मुलतानी ।
मकु शुष्क मिले कुछ गील सने तल कीचड़ पर्वत धुर पठरानी ।
कुल जीव बने सिर धूल चढ़े, शुभ *पीठ तजे, मनुवा मनमानी ।
मटियावत नीति मिटावत मीत, हुआ *मटिया नहिं पावत पानी ||
*देवस्थान / आसन                       *लाश


सुन्दर दोहे रच रहे, हरते मन का शोक ।
चाक चकाचक चल रहा, रे मानव मत रोक ।
रे मानव मत रोक, रचे अलबेली कृतियाँ ।
सुगढ़ सलोनी कई, कई में सौ विकृतियाँ ।
घालमेल में दक्ष, वायु जल अनल जलाकर ।
भू छोड़े नहिं अक्ष, कर्म सारे ही सुन्दर ॥



रविकर चाल सुधार, नहीं तो क्वांरा छोरा-

बड़ा बटोरा आज तक, लोलुपता ने माल |
बेंच बेंच दूल्हा किया,  शादीघर बदहाल  |

शादीघर बदहाल,  सुता चैतन्य आज है । 
बढ़ा चढ़ा विश्वास, स्वयं पर उसे नाज है । 

रविकर चाल सुधार, नहीं तो  क्वांरा छोरा । 
नहीं सकेगा भोग, माल जो बड़ा बटोरा ॥