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Monday, 16 December 2013

ताल-मेल का ताल, डुबकियां "आप" लगाएं

दायें बायें जाय के, कैसे काटूं कान |
कूट कूट कर जो भरा, काया में ईमान |

काया में ईमान, बिठाया लोकपाल भी |
बहुत बजाया गाल, दिया है साथ ताल भी |

ताल-मेल का ताल, डुबकियां आप लगाएं | 
*कूटकर्म से मार, मछलियां दायें-बायें ||

*छल धोखा 
टोपी बिन पहचान में, नहीं आ रहे आप |
लगे अवांछित आम जन, अपना रस्ता नाप | 

अपना रस्ता नाप, शाप है धरती माँ का |
बको अनाप-शनाप, भिड़ेगा तब ही टाँका |

चतुर करेगा राज, होय चाहे आरोपी |
डुबकी आप लगाय, लगा लो बस यह टोपी ||

काना राजा भी भला, हम अंधे बेचैन |
सहमत हम सब मतलबी, प्यासे कब से नैन |

प्यासे कब से नैन, सात सौ लीटर पानी |
गै पानी मा भैंस, शर्त की की नादानी |

सत्ता को अब तलक, मात्र मारा है ताना |
पाय खुला भू-फलक, नहीं अब "आप" छकाना |

Tuesday, 10 December 2013

लेना देना साथ भी, लागे भ्रष्टाचार-

अड़ियल टट्टू आपका, अड़ा-खड़ा मझधार |
लेना देना साथ भी, लागे भ्रष्टाचार |

लागे भ्रष्टाचार, दीखने लगा *अड़ाड़ा |
भाड़ा पूरा पाय, पढ़ाये आज पहाड़ा |

ताके पूरा देश, हमेशा बेहतर दढ़ियल |
टस से मस ना होय, महत्वाकांक्षी अड़ियल ||
*आडम्बर, ढोंग

अभी अपेक्षा आप, करो दिल्ली की पूरी-

नकारात्मक गुण छिपा, ले ईमान की आड़ । 
व्यवहारिकता की कमी, दुविधा रही बिगाड़ । 

दुविधा रही बिगाड़,  तर्क-अभिव्यक्ति जरुरी । 
अभी अपेक्षा आप, करो दिल्ली की पूरी । 

पानी बिजली सहित, प्रशासन स्वच्छ सकारा । 
वायदे करिये पूर, अन्यथा कहूं नकारा ॥  

Saturday, 7 December 2013

चुल्लू में उल्लू बने, धन्य समर्थक आप -

चुल्लू में उल्लू बने, धन्य समर्थक आप |
कीचड़ में खिलते कमल, चालू क्रिया-कलाप |

चालू क्रिया-कलाप, संभालो कुनबा अपना |
माना उनसे बीस, किन्तु है अभी निबटना |

साम-दाम मद लोभ, बदल ना जाँय निठल्लू |
होय खरीद-फरोख्त, मँगा पानी इक चुल्लू ||

चुल्लू में उल्लू बनना= थोड़ी सी भाँग पीकर बेसुध हो जाना-

Friday, 6 December 2013

व्यर्थ रेप कानून, कहे इत खुल्लम खुल्ला-

अब्दुल्ला दीवानगी, देख बानगी एक |
करे खिलाफत किन्तु फिर, देता माथा टेक |

देता माथा टेक, नेक बन्दा है वैसे |
किन्तु तरुण घबराय, लिफ्ट की लिप्सा जैसे |

व्यर्थ रेप कानून, कहे इत खुल्लम खुल्ला |
उसका राज्य विशेष, जानता उत अब्दुल्ला ||

रविकर करो सफ़ेद, कलेजा अपना काला-

पाला पड़ता इस कदर, पौधा दिया गलाय |
उनके पाले जो पड़े,  *पालागन कर जाय |
*पैर लगना, नमस्कार करना 

*पालागन कर जाय, अन्यथा बच ना पाये |
जाय चांदनी जीत, धूप को मौसम खाये | 

रविकर करो सफ़ेद, कलेजा अपना काला |
मकु होवे नरमेध, सोच गर कुत्सित पाला ||

Wednesday, 4 December 2013

सेना है नारायणी, साईँ करो क़ुबूल-

पेशी साईँ की इधर, फूल बिछाते फूल |
सेना है नारायणी, साईँ करो क़ुबूल |

साईँ करो क़ुबूल, किन्तु नहिं जुर्म कबूला |
झोंक आँख में धूल, सतत दक्षिणा वसूला |

बेशक नारा ढील, किन्तु फॉलोवर वेशी |
भागा लाखों मील, हुई दिल्ली में पेशी ||

Saturday, 30 November 2013

बदली सबला रूप, खींच कर रखती डोरी-


आखिर क्यों :आसान नहीं रहता है औरतों का कामानन्द प्राप्त होना

Virendra Kumar Sharma 

क्रीड़ा-हित आतुर दिखे, दिखे परस्पर नेह |
पहल पुरुष के हाथ में, सम्पूरक दो देह | 

सम्पूरक दो देह, मगर संदेह हमेशा |
होय तृप्त इत देह, व्यग्र उत रेशा रेशा |

भाग चला रणछोड़, बड़ी देकर के पीड़ा |
बनता कच्छप-यौन, करे न छप छप क्रीड़ा || 



गोरी *गोही आदतन, द्रोही हरदम मर्द |
गर्मी पल में सिर चढ़े, पल दो पल में सर्द |

पल दो पल में सर्द, दर्द देकर था जाता |
करता था बेपर्द, रहा हर वक्त सताता |

बदली सबला रूप, खींच कर रखती डोरी |
होय श्रमिक या भूप, नचा सकती है गोरी ||

*छुपा कर रखने में सक्षम 


Friday, 29 November 2013

आ जा भारत रत्न, कांबळी रस्ता नापे






काम्बली की ओर से-
खा के झटका मित्र से, दिल का दौरा झेल |
जिस भी कारण से हुई, हुई दोस्ती फेल |

हुई दोस्ती फेल, कलेजा फिर से काँपे  |
आ जा भारत रत्न, कांबळी रस्ता नापे |

हुई दोस्त से भूल, माफ़ करदे अब आ के  |
लागे व्यर्थ कलंक, अकेले पार्टी खा के ||

Thursday, 28 November 2013

खाये घर की दाल, मजे ले अक्सर रविकर-

करमहीन नर हैं सुखी, कर्मनिष्ठ दुःख पाय |
बैठ हाथ पर हाथ धर, खुद लेता खुजलाय |

खुद लेता खुजलाय, स्वयं पर रखें नियंत्रण |
दे कोई उकसाय, चले ठुकराय निमंत्रण |

टाले सकल बवाल, रहे मुर्गी से बचकर |
खाये घर की दाल, मजे ले अक्सर रविकर ||


नहीं छानना ख़ाक, बाँध कर रखो लंगोटा

केले सा जीवन जियो, मत बन मियां बबूल |
सामाजिक प्रतिबंध कुल, दिल से करो क़ुबूल |

दिल से करो क़ुबूल, अन्यथा खाओ सोटा  |
नहीं छानना ख़ाक, बाँध कर रखो लंगोटा |

दफ्तर कॉलेज हाट, चौक घर मेले ठेले |
रहो सदा चैतन्य, घूम मत कहीं अकेले | 

Sunday, 24 November 2013

रंग धर्म क्षेत्रीयता, पद मद के दुष्कृत्य

कुंडलियां 

(१)

मानव समता पर लगे, प्रश्न चिन्ह सौ नित्य ।
 रंग धर्म क्षेत्रीयता, पद मद के दुष्कृत्य । 

पद मद के दुष्कृत्य , श्रमिक रानी में अंतर । 
प्राण तत्व जब एक, दिखें क्यूँ भेद भयंकर ।

रविकर चींटी देख, कभी ना बनती दानव । 
रखे परस्पर ख्याल, सीख ले इनसे मानव ॥ 


(२)

बड़ा स्वार्थी है मनुज, शक्कर खोपर चूर  । 
चींटी खातिर डालता, शनि देते जब घूर । 

शनि देते जब घूर, नहीं तो लक्ष्मण रेखा । 
मानव कितना क्रूर, कहीं ना रविकर देखा । 

कर्म-योगिनी श्रेष्ठ,  नीतिगत बंधन तगड़ा । 
रखें चीटियां धैर्य,  व्यर्थ ना जाँय हड़बड़ा ॥ 

Friday, 22 November 2013

नीति-नियम में लोच, कोर्ट इनको फटकारे-

मुआवजा नहि वेवजह, पीछे घातक सोच |
खैरख्वाह इक वर्ग के, नीति-नियम में लोच |

नीति-नियम में लोच, कोर्ट इनको फटकारे |
इन्हें नहीं संकोच, दूसरा वर्ग नकारे |

जो जो खाया चोट, इन्हें दे रहा बद्दुआ |
कह इमाद रहमान, होय या लीडर रमुआ ||

Thursday, 21 November 2013

चूर चूर विश्वास, किया क्या हाय शाजिया -

रखे ताजिया *जिया का, भैया अपने आप |
अविश्वास रविकर नहीं, पर करता है बाप |

पर करता है बाप, रही छवि अब ना उजली |
कीचड़ में ही कमल, हाथ में चालू खुजली |

चूर चूर विश्वास, किया क्या हाय शाजिया |
अंतर दिया मिटाय, कहाँ हम रखें ताजिया ||
*दीदी 

Tuesday, 19 November 2013

जिन्दा भारत-रत्न मैं, मैं तो बसूँ विदेश -

जिन्दा भारत-रत्न मैं, मैं तो बसूँ विदेश |
पता नहीं यह मीडिया, खुलवा दे क्या केस |

खुलवा दे क्या केस, करूँगा खुल के मस्ती |
नहीं किसी को क्लेश, मटरगस्ती कुछ सस्ती |

बना दिया भगवान्, करूं क्यूँकर शर्मिंदा |
बनकर मैं इंसान, चाहता रहना जिन्दा ||


सचिन घोंसला व्यग्र, अंजली अर्जुन सारा-


Photo 1 of 13
स्वार्थ हमारा ले रहा, पिच दर पिच आनंद |
प्रतिपल के उन्माद में, तथ्य भूलते चन्द |

तथ्य भूलते चन्द, महामानव है बन्दा |
रेफलेक्सेज नहिं मंद, गगन छू चुका परिंदा |

सचिन घोंसला व्यग्र, अंजली अर्जुन सारा |
बच्चों का अधिकार, छीनता स्वार्थ हमारा ||

चौबिस वर्षों तक जमा, रहा जमाना ताक-

  



बहा नाक से खून पर, जमा पाक में धाक |
चौबिस वर्षों तक जमा, रहा जमाना ताक |

रहा जमाना ताक, टेस्ट दो सौ कर पूरे |
कर दे ऊँची नाक, बहा ना अश्रु जमूरे |

चला मदारी श्रेष्ठ, दिखाके करतब नाना |
ले लेता संन्यास, उम्र का करे बहाना |। 

दद्दा चुप्पै बैठिये, गोल-पोस्ट में खोट -

हाकी-काकी के कहाँ, काके कितने वोट |
दद्दा चुप्पै बैठिये, गोल-पोस्ट में खोट |

गोल-पोस्ट में खोट, जाय हिटलर हड़काये |
देंगे भारत-रत्न, गोल्ड पर कितना लाये ?

रविकर अंतर-ध्यान, चन्द बुड्ढे ही बाकी |
उनके कितने वोट, युवा ना देखें हाकी ||


Major Dhyan Chand
Dhyan Chand closeup.jpg

Sunday, 17 November 2013

बोलो सतत असत्य, डूब के खोजो मोती-

(1)
होती जिनसे चूक है, कहते उन्हें उलूक |
असत्यमेव लभते सदा, यदा कदा हो चूक |

यदा कदा हो चूक, मूक रह कर के लूटो |
कह रविकर दो टूक, लूट के झटपट फूटो |

बोलो सतत असत्य, डूब के खोजो मोती |
व्यवहारिक यह कथ्य, सदा जय इससे होती ||

(2)

कहे कुटुंबी कहकहे, अपना ही जनतंत्र |
पितामहे मातामहे, लूटामहे सुमंत्र |

लूटामहे सुमंत्र, राज का तंत्र अनोखा |
खुद को छप्पनभोग, आम पब्लिक को चोखा |

चुन लेते सर नेम, लिस्ट यह काफी लम्बी  |
यही लूट का गेम, आज फिर कहे कुटुम्बी ||

Saturday, 16 November 2013

मोदी छीने स्वाद, नमक भिजवाना भूला-










भूला रोटी प्याज भी, अब मिलती ना भीख |
नमक चाट कर जी रहे, ले तू भी ले चीख |

ले तू भी ले चीख, चीख पटना में सुनकर |
हुआ खफा गुजरात, हमें लगता है रविकर |

राहुल बाँटे अन्न, सकल जनतंत्र कबूला |
मोदी छीने स्वाद, नमक भिजवाना भूला ||

Friday, 15 November 2013

अंग अंग दे बेंच, देख रविकर का बूता-

खलियाना खलता नहीं, चमड़ी धरो उतार |
मँहगाई की मार से, बेहतर तेरी मार |

बेहतर तेरी मार, बना के पहनो जूता |
अंग अंग दे बेंच, देख रविकर का बूता |

जीना हुआ मुहाल, भला है बूचड़-खाना -
झटका अते हलाल, शुरू कर तू खलियाना ||

Wednesday, 13 November 2013

सट्टेबाजी में लगा, खलनायक रंजीत-


cbi निदेशक का विवादास्पद बयानसट्टेबाजी की तुलना रेप से की

सट्टेबाजी में लगा, खलनायक रंजीत |
कानूनी जामा पहन, मिटटी करे पलीत |

मिटटी करे पलीत, जबरदस्ती की आफत |
करिये फिर भी मौज, अगर दुष्कर्मी सोहबत |

है अकाट्य यह तर्क, आज तो चख दे फ़ट्टे |
मिटा दिया जब फर्क, लगाओ खुलकर सट्टे || 

Monday, 11 November 2013

चला कटारी घोप, हिन्दु हूँ इत्तेफाक से-










 शिक्षा से क्रिश्चियन हूँ, रोप दिया यूरोप |
संस्कार से मुसलमाँ, चला कटारी घोप |

चला कटारी घोप, हिन्दु हूँ इत्तेफाक से |
इसीलिए तो कोप, डुबाता हूँ खटाक से |

राष्ट्रवाद बकवास, नीतियां ले भिक्षा से |
चरा दिया तो देश, विदेशी ऋण, शिक्षा से ||

Friday, 8 November 2013

पुन: मुज्जफ्फर नगर, करूँ क्यूँकर अनुशंसा-

(१)
बारी बारी से करें, दरबारी स्तुतिगान |
गरिमा से गणतंत्र की, खेल रहे नादान |

खेल रहे नादान, अधिकतर गलतबयानी |
खानदान वरदान, सयानी रविकर रानी  |

कई पालतू सिंह, पाय के मनसबदारी ।  
जी हुजूर आदाब, बजाते कुल- दरबारी । 

(२)
मंशा पर करते खड़े, क्यूँ आयोग सवाल । 
भल-मन-साहत देखिये, देख लीजिये चाल । 

देख लीजिये चाल, चार पन्ने का उत्तर । 
होता मुन्ना पास, मिले शाबाशी पुत्तर । 

पुन: मुज्जफ्फर नगर, करूँ क्यूँकर अनुशंसा ।
उधर इरादा पाक, इधर इनकी जो मंशा ॥ 

Tuesday, 5 November 2013

लिया पाक से बीज, खाद ढाका से लाये-

खीरा-ककड़ी सा चखें, हम गोली बारूद |
पचा नहीं पटना सका, पर अपने अमरूद |

पर अपने अमरूद, जतन से पेड़ लगाये |
लिया पाक से बीज, खाद ढाका से लाये |

बिछा पड़ा बारूद, उसी पर बैठ कबीरा |
बने नीति का ईश, जमा कर रखे जखीरा ||


नक्सल आतंकी कहीं, फिर ना जायें कोप |
शान्ति-भंग रैली करे, सत्ता का आरोप |

सत्ता का आरोप, निभाता नातेदारी |
विस्फोटक पर बैठ, मस्त सरकार बिहारी |

दशकों का अभ्यास, सँभाले रक्खा भटकल |
रैली से आतंक, इलेक्शन से हैं नक्सल ||

कीचड़ तो तैयार, कमल पर कहाँ खिलेंगे ??Tuesday, 30 July 2013

Tuesday, 30 July 2013


खिलें इसी में कमल, आँख का पानी, कीचड़


कीचड़ कितना चिपचिपा, चिपके चिपके चक्षु |
चर्म-चक्षु से गाय भी, दीखे उन्हें तरक्षु |

दीखे जिन्हें तरक्षु, व्यर्थ का भय फैलाता |
बने धर्म निरपेक्ष, धर्म की खाता-गाता |

कर ले कीचड़ साफ़,  अन्यथा पापी-लीचड़ |
खिलें इसी में कमल, आँख का पानी, कीचड़ |
चर्म-चक्षु=स्थूल दृष्टि
तरक्षु=लकडबग्घा


कमल खिलेंगे बहुत पर, राहु-केतु हैं बंकु |
चौदह के चौपाल  की, है उम्मीद त्रिशंकु |

है उम्मीद त्रिशंकु, भानुमति खोल पिटारा |
करे रोज इफ्तार, धर्म-निरपेक्षी नारा |

ले "मकार" को साध, कुशासन फिर से देंगे |
कीचड़ तो तैयार, कमल पर कहाँ खिलेंगे  ??
*Minority
*Muthuvel-Karunanidhi 
*Mulaayam
*Maayaa
*Mamta 

Monday, 4 November 2013

विस्फोटक पर बैठ, मस्त सरकार बिहारी-

नक्सल आतंकी कहीं, फिर ना जायें कोप |
शान्ति-भंग रैली करे, सत्ता का आरोप |

सत्ता का आरोप, निभाता नातेदारी |
विस्फोटक पर बैठ, मस्त सरकार बिहारी |

दशकों का अभ्यास, सँभाले रक्खा भटकल |
रैली से आतंक, इलेक्शन से हैं नक्सल ||

खीरा-ककड़ी सा चखें, हम गोली बारूद |

पचा नहीं पटना सका, पर अपने अमरूद |

पर अपने अमरूद, जतन से पेड़ लगाये |
लिया पाक से बीज, खाद ढाका से लाये |

बिछा पड़ा बारूद, उसी पर बैठ कबीरा |
बने नीति का ईश, जमा कर रखे जखीरा ||

Saturday, 2 November 2013

धोते "रविकर" पाप, आज गर बापू होते -


बापू होते खेत इत, भारत चाचा खेत |
सेत-मेत में पा गए, वंशावली समेत |

वंशावली समेत, समेंटे सत्ता सारी |
  अहंकार कुल छाय, पाय के कुल-मुख्तारी |

"ताल-कटोरा" आय, लगाते घोंघे गोते |
धोते "रविकर" पाप, आज गर बापू होते -


पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक-रविकर



पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक |
वली-वलीमुख अवध में, सबके प्रभु तो एक |
सब के प्रभु तो एक, उन्हीं का चलता सिक्का |
कई पावली किन्तु, स्वयं को कहते इक्का |
जाओ उनसे चेत, बनो मत मूर्ख गावदी |
रविकर दिया सँदेश, मिठाई पाव पाव दी ||



वली-वलीमुख = राम जी / हनुमान जी 
पावली=चवन्नी 
गावदी = मूर्ख / अबोध