बजे बाँसुरी बेसुरी, काट फेंकते बाँस ।
यही मानसिकता करे, कन्या भ्रूण विनाश ।
कन्या भ्रूण विनाश, लाश अपनी ढो लेंगे ।
नहीं कहीं अफ़सोस, कुटिल कांटे बो देंगे ।
गर इज्जत की फ़िक्र, व्याह करते हो काहे ?
यही मानसिकता करे, कन्या भ्रूण विनाश ।
कन्या भ्रूण विनाश, लाश अपनी ढो लेंगे ।
नहीं कहीं अफ़सोस, कुटिल कांटे बो देंगे ।
गर इज्जत की फ़िक्र, व्याह करते हो काहे ?
नारी पर अन्याय, भरोगे आगे आहें ।।