2-घनाक्षरी
हृदय के आर पार, झूरे चला जात है |
नेह का बुलाय लेत, देह झकझोर देत
झंझट हो सेत-मेत, भाग भला जात है |
बेहद तकरार हो, खुदी खुद ही जाय खो
पग-पग पे कांटे बो, प्रेम गीत गात है |
मार-पीट करे खूब, प्रिय का धरत रूप
नयनों से करे चुप, ऐसे आजमात है ||
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धरती के वस्त्र पीत, अम्बर की बढ़ी प्रीत
भवरों की हुई जीत, फगुआ सुनाइये ।
जीव-जंतु हैं अघात, नए- नए हरे पात
देख खगों की बरात, फूल सा लजाइये ।
चांदनी शीतल श्वेत, अग्नि भड़काय देत
कृष्णा को करत भेंट, मधुमास आइये ।
धीर जब अधीर हो, पीर ही तकदीर हो
उनकी तसवीर को , दिल में बसाइए ।।
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