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Wednesday, 31 October 2012

कान्ता कर करवा करे, सालो-भर करवाल-


 (शुभकामनाएं)
कर करवल करवा सजा,  कर सोलह श्रृंगार |
माँ-गौरी आशीष दे,  सदा बढ़े शुभ प्यार ||
   करवल=काँसा मिली चाँदी
कृष्ण-कार्तिक चौथ की,  महिमा  अपरम्पार |
क्षमा सहित मन की कहूँ,  लागूँ  राज- कुमार ||
Karwa Chauth
(हास-परिहास)
कान्ता कर करवा करे, सालो-भर करवाल |
  सजी कन्त के वास्ते, बदली-बदली  चाल ||
  करवाल=तलवार  
करवा संग करवालिका,  बनी बालिका वीर |
शक्ति  पा  दुर्गा   बनी,  मनुवा  होय  अधीर ||
करवालिका = छोटी गदा / बेलन जैसी भी हो सकती है क्या ?
 शुक्ल भाद्रपद चौथ का, झूठा लगा कलंक |
सत्य मानकर के रहें,  बेगम सदा सशंक ||

  लिया मराठा राज जस, चौथ नहीं पूर्णांश  |
चौथी से ही चल रहा,  अब क्या लेना चांस ??
(महिमा )  
नारीवादी  हस्तियाँ,  होती  क्यूँ  नाराज |
गृह-प्रबंधन इक कला, ताके सदा समाज ||

 मर्द कमाए लाख पण,  करे प्रबंधन-काज |
घर लागे नारी  बिना,  डूबा  हुआ  जहाज  ||

सास ससुर सुत सुता पति, सेवा में हो शाम

चली माइके 
छुट्टी का हक़ है सखी, चौबिस घंटा काम |
  सास ससुर सुत सुता पति, सेवा में हो शाम |


सेवा में हो शाम, नहीं सी. एल. नहिं इ. एल. |
जब केवल सिक लीव,  जाय ना जीवन जीयल |


रविकर मइके जाय, पिए जो माँ की घुट्टी |
  ढूँढे निज अस्तित्व, बिता के दस दिन छुट्टी ||

Tuesday, 30 October 2012

गोत्रज विवाह-


गुण-सूत्रों की विविधता, बहुत जरूरी चीज |
गोत्रज में कैसे मिलें, रखिये सतत तमीज ||

गोत्रज दुल्हन जनमती, एकल-सूत्री रोग |
दैहिक सुख की लालसा, बेबस संतति भोग ||

नहीं चिकित्सा शास्त्र में, इसका दिखे उपाय |
गोत्रज जोड़ी अनवरत, संतति का सुख खाय ||

गोत्रज शादी को भले, भरसक दीजे टाल |
मंजूरी करती खड़े, टेढ़े बड़े सवाल ||

परिजन लेवे गोद जो, कर दे कन्या-दान |
उल्टा हाथ घुमाय के, खींचें सीधे कान ||

मिटते दारुण दोष पर, ईश्वर अगर सहाय |
सबसे उत्तम ब्याह हित, दूरी रखो बनाय ||

गोत्र-प्रांत की भिन्नता, नए नए गुण देत |
संयम विद्या बुद्धि बल, साहस रूप समेत ||

Saturday, 27 October 2012

खिला गम को, पानी पिलाया बहुत है-

यूँ तो मुहब्बत किया जान देकर-
मगर ख़ुदकुशी ने रुलाया बहुत है |

अगर गम गलत कर न पाए हसीना-
खिला गम को, पानी पिलाया बहुत है ||

तड़पते तड़पते हुआ लाश रविकर-
जबर ठोकरों ने हिलाया बहुत है ||

गाया गजल गुनगुनाया गुनाकर -
 सुना मर्सिया तूने गाया बहुत है ||

दिखी तेरे होंठो पे अमृत की बूँदें -
जिद्दी को तूने जिलाया बहुत है ||

Friday, 26 October 2012

शब्द-वाण विष से बुझे, मित्र हरे झट प्राण-

  दोहे 

शत्रु-शस्त्र से सौ गुना, संहारक परिमाण ।
शब्द-वाण विष से बुझे, मित्र हरे झट प्राण ।।


हर बाला इक वंश है, फूले-फले विशाल |
होवे देवी मालिनी,  हरी भरी हर डाल ||
 
करते मटियामेट शठ, नीति नियंता नोच ।
जांचे कन्या भ्रूण खलु, मारे नि:संकोच ।।

काँव काँव काकी करे, काकचेष्टा *काकु ।
करे कर्म कन्या कठिन, किस्मत कुंद कड़ाकु ।।
*
दीनता का वाक्य




औरन की फुल्ली लखैं , आपन  ढेंढर  नाय
ऐसे   मानुष   ढेर  हैं,   चलिए  सदा  बराय||

पीड़ा बेहद जाय बढ़, अंतर-मन अकुलाय ।
जख्मों की तब नीलिमा, कागद पर छा जाय । 

*ताली मद माता मनुज, पाय भोगता कोष ।
पिए झेल अवहेलना, किन्तु बजाये जोश ।।
ताड़ी / चाभी / करतल ध्वनि



Thursday, 25 October 2012

अहंकार का वार, पड़े रिश्ते पर भारी-

यारी को लेते बना, जब अपना ईमान ।
प्रगति पंथ पर प्रेम से, करते मित्र पयान ।
करते मित्र पयान, नहीं हो कोई रोड़ा ।
लेकिन यह विश्वास, कहीं गर कोई तोड़ा ।
अहंकार का वार, पड़े रिश्ते पर भारी ।
दुर्गति की शुरुवात, करे जालिम ऐयारी ।।

Wednesday, 24 October 2012

बच्चे चार करोड़ जब, गए रास्ता भूल-


सड़क
मद्धिम गति से नापिए, कहीं रपट न जाय ।
दस गड्ढों के बीच में, देते सड़क बनाय।।


स्वास्थ्य
राम भरोसे स्वास्थ्य है, चमके नीम हकीम ।
रोज हजारों शिशु मरें, लिखता रहा मुनीम ।

 पानी
पानी बोतलबंद है, पी लो मित्र खरीद ।
बत्तिस में दिन भर पियो, कर लो होली ईद ।

  शिक्षा
बच्चे चार करोड़ जब, गए रास्ता भूल ।
मिड-डे  भोजन पच रहा, झोंक आँख में धूल ।।

उच्च शिक्षा
नाकारा इंजीनियर, बढ़ें साल में  ढेर।
ना घर के ना घाट के, देख गली के शेर ।।

 सुरक्षा
सके परिंदा मार पर, बड़ी असंभव बात ।
कड़ी सुरक्षा दे दिखा, जन सेवक औकात ।।

  भोजन
राशन पानी में सड़े, रहस्य छुपे बड़वार ।
बोतल में ले घूमिये, लो लपेट अखबार ।।

ऐसा भी हुआ है -

बुक चाबुक-
बुक फेसबुक
फेस टू  फेस
रिलेशन की रेस
डेट
आखेट
फॉर्म हाउस
कैट एंड माउस
हथियार 
धारदार  
शिकार 
होशियार होशियार खबरदार !!!!


Tuesday, 23 October 2012

पिघलती चाहें- रौ में बहे जा ||

 करेर कलेजा ।
सन्देश भेजा ।।

खफा मोहब्बत-
आहें सहेजा ।।

सह ले सताना-
गजलें कहे जा ।।

पिघलती चाहें-
रौ में बहे जा ।।

"रविकर" अँधेरा -
दीपक गहे जा ।।


दुर्जन छवि हित किन्तु है, काफी एक विवाद-


दोहे  
सज्जन सी छवि पा गया, कर शत सत-संवाद ।
दुर्जन छवि हित किन्तु है, काफी एक विवाद ।।

आदिकाल की नग्नता, गई आज शरमाय ।
 परिधानों में पापधी , नंगा-लुच्चा पाय ।।  

लम्बी लम्बी बतकही, लम्बी लम्बी छोड़ ।
हँस हँस कर लम्बा हुआ, होवे पेट मरोड़ ।।

Monday, 22 October 2012

दुर्जन छवि हित किन्तु है, काफी एक विवाद-



दोहे  
सज्जन सी छवि पा गया, कर शत सत-संवाद ।
दुर्जन छवि हित किन्तु है, काफी एक विवाद ।।

आदिकाल की नग्नता, गई आज शरमाय ।
 परिधानों में पापधी , नंगा-लुच्चा पाय ।।  

लम्बी लम्बी बतकही, लम्बी लम्बी छोड़ ।
हँस हँस कर लम्बा हुआ, होवे पेट मरोड़ ।।


 कुण्डली  
चौदह सुइयां लगी थीं, काटा गोरा श्वान ।
काली कुतिया काटती, गई चार पे मान ।
गई चार पे मान, मर्म ऐसे समझाया ।
काटे नित इक शख्स, इसी से चार लगाया ।
कहीं विदेशी नस्ल, अगरचे  काटी चाटी ।
सुई लगे न एक, मुहब्बत की परिपाटी।।

Sunday, 21 October 2012

भ्रमित कहीं न होय, हमारी प्रिय मृग-नैनी -

  http://www.openbooksonline.com/

'चित्र से काव्य तक' प्रतियोगिता अंक -१९

कुंडलियाँ 

 चश्में चौदह चक्षु चढ़, चटचेतक चमकार ।
रेगिस्तानी रेणुका, मरीचिका व्यवहार ।
मरीचिका व्यवहार, मरुत चढ़ चौदह तल्ले ।
 मृग छल-छल जल देख, पड़े पर छल ही पल्ले ।
मरुद्वेग खा जाय, स्वत: हों अन्तिम रस्में ।
फँस जाए इन्सान,  ढूँढ़ नहिं पाए चश्में  ।।



मरुकांतर में जिन्दगी, लगती बड़ी दुरूह ।
लेकिन जैविक विविधता, पलें अनगिनत जूह ।
पलें अनगिनत जूह, रूह रविकर की काँपे।
पादप-जंतु अनेक, परिस्थिति बढ़िया भाँपे ।
अनुकूलन में दक्ष, मिटा लेते कुल आँतर ।
उच्च-ताप दिन सहे, रात शीतल मरुकांतर ।।


 रेतीले टीले टले, रहे बदलते ठौर।
मरुद्वेग भक्षण करे, यही दुष्ट सिरमौर ।
यही दुष्ट सिरमौर, तिगनिया नाच नचाए ।
बना जीव को कौर, अंश हर एक पचाए ।
ये ही मृग मारीच, जिन्दगी बच के जीले ।
देंगे गर्दन रेत,  दुष्ट बैठे रेती ले ।

मृगनैनी नहिं सोहती, मृग-तृष्णा से क्षुब्ध ।
विषम-परिस्थित सम करें, भागें नहीं प्रबुद्ध ।
भागें नहीं प्रबुद्ध, शुद्ध अन्तर-मन कर ले ।
प्रगति होय अवरुद्ध, क्रुद्धता बुद्धि हर ले ।
रहिये नित चैतन्य, निगाहें रखिये पैनी ।
भ्रमित कहीं न होय, हमारी प्रिय मृग-नैनी ।।
 



 चश्में=ऐनक / झरना 
चटचेतक  = इंद्रजाल 
रेणुका=रेत कण / बालू 
मरुद्वेग=वायु का वेग / एक दैत्य का नाम   
मरुकांतर=रेतीला भू-भाग 
जूह =एक जाति के अनेक जीवों का समूह 
आँतर = अंतर 

Saturday, 20 October 2012

सत्तइसा का पूत, प्रश्न दागे सत्ताइस -

सत्ताइस सत्ता *इषुधि, छोड़े **विशिख सवाल ।
दिग्गी चच्चा खुश दिखे, तंग केजरीवाल।
*तरकस **तीर 
 
 तंग केजरीवाल, विदेशी दान मिला है ।
डालर गया डकार, यही तो बड़ी गिला है ।
 
करिए स्विस में जमा, माल सब साढ़े बाइस ।
सत्तइसा का पूत, प्रश्न दागे सत्ताइस ।।

गए खोजने गडरिया, बहेलिया मिल जाए-रविकर

गए खोजने गडरिया, बहेलिया मिल जाए |
उग्र केजरी लोमड़ी, तीरों से हिल जाए |

तीरों से हिल जाए , फुलझड़ी निकला गोला |
फुस फुस दे करवाए, व्यर्थ ही हल्ला बोला |

सदाचार केजरी, अल्पमत सच्चे वोटर |
बनवाएं सरकार, बटेरें तीतर मिलकर ।।

घोटा जा सकता नहीं, कह बेनी अपमान ।
बड़े खिलाड़ी बेंच पर, रे नादाँ सलमान ।
रे नादाँ सलमान, जहाँ अरबों में खेले ।
अपाहिजी सामान, यहाँ तू लाख धकेले ।
इससे अच्छा बेंच, धरा पाताल गगन को ।
हो बेनी को  गर्व, बेंच दे अगर वतन को ।।

खर्चे कम बाला नशीं, कितना चतुर दमाद ।
कौड़ी बनती अशर्फी, देता रविकर दाद ।
देता रविकर दाद, मास केवल दो बीते ।
लेकिन दुश्मन ढेर, लगा प्रज्वलित पलीते ।
कुछ भी नहीं उखाड़, सकोगे कर के चर्चे ।
करवा लूँ सब ठीक, चवन्नी भी बिन खर्चे ।

Friday, 19 October 2012

बन कमीनी पुलिस घूमे ब्लॉग पर नित-

उल्लुओं ने शाख पर डेरा जमाया ।
लल्लुओं ने साख पर बट्टा लगाया ।

था खुला-सा तनिक घपले का पिटारा ।
वो खुलासा-बाज जम कर है पिटाया ।।

दिन रात दुनी चौगुनी होती रकम थी-
रोज शत गुण खेलती अब खेल माया ।।

क्यों खरीदी हैं जमीनें बादशाहों -
खानदानी है विरासत कर नुमाया ।

बन कमीनी पुलिस घूमे ब्लॉग पर नित 
कौन रविकर ब्लॉग पर जा टिप-टिपाया ।।

Wednesday, 17 October 2012

गए खोजने गडरिया, बहेलिया मिल जाए-रविकर

गए खोजने गडरिया, बहेलिया मिल जाए |
उग्र केजरी लोमड़ी, तीरों से हिल जाए |

तीरों से हिल जाए , फुलझड़ी निकला गोला |
फुस फुस दे करवाए, व्यर्थ ही हल्ला बोला |

सदाचार केजरी, अल्पमत सच्चे वोटर |
बनवाएं सरकार, बटेरें तीतर मिलकर ।।

घोटा जा सकता नहीं, कह बेनी अपमान ।
बड़े खिलाड़ी बेंच पर, रे नादाँ सलमान ।
रे नादाँ सलमान, जहाँ अरबों में खेले ।
अपाहिजी सामान, यहाँ तू लाख धकेले ।
इससे अच्छा बेंच, धरा पाताल गगन को ।
हो बेनी को  गर्व, बेंच दे अगर वतन को ।।

खर्चे कम बाला नशीं, कितना चतुर दमाद ।
कौड़ी बनती अशर्फी, देता रविकर दाद ।
देता रविकर दाद, मास केवल दो बीते ।
लेकिन दुश्मन ढेर, लगा प्रज्वलित पलीते ।
कुछ भी नहीं उखाड़, सकोगे कर के चर्चे ।
करवा लूँ सब ठीक, चवन्नी भी बिन खर्चे ।
 

हो बेनी को गर्व, बेंच दे अगर वतन को-

 

घोटा जा सकता नहीं, कह बेनी अपमान ।
बड़े खिलाड़ी बेंच पर, रे नादाँ सलमान ।
रे नादाँ सलमान, जहाँ अरबों में खेले ।
अपाहिजी सामान, यहाँ तू लाख धकेले ।
इससे अच्छा बेंच, धरा पाताल गगन को ।
हो बेनी को  गर्व, बेंच दे अगर वतन को ।।

खर्चे कम बाला नशीं, कितना चतुर दमाद ।
कौड़ी बनती अशर्फी, देता रविकर दाद ।
देता रविकर दाद, मास केवल दो बीते ।
लेकिन दुश्मन ढेर, लगा प्रज्वलित पलीते ।
कुछ भी नहीं उखाड़, सकोगे कर के चर्चे ।
करवा लूँ सब ठीक, चवन्नी भी बिन खर्चे ।
खर्चे कम बाला नशीं = वीरु भाई व्याख्या कर दें कृपया ।।

Tuesday, 16 October 2012

खर्चे कम बाला नशीं, कितना चतुर दमाद-

खर्चे कम बाला नशीं, कितना चतुर दमाद ।
कौड़ी बनती अशर्फी, देता रविकर दाद ।

देता रविकर दाद, मास केवल दो बीते ।
लेकिन दुश्मन ढेर, लगा प्रज्वलित पलीते ।

कुछ भी नहीं उखाड़, सकोगे कर के चर्चे ।
करवा लूँ सब ठीक, चवन्नी भी बिन खर्चे ।

खर्चे कम बाला नशीं = वीरु भाई व्याख्या कर दें कृपया ।।

Monday, 15 October 2012

वीर मलाला-


उगती जब नागफनी दिल में, मरुभूमि बबूल समूल सँभाला ।

बरसों बरसात नहीं पहुँची, धरती जलती अति दाहक ज्वाला ।

उठती जब गर्म हवा तल से, दस मंजिल हो भरमात कराला ।

पढ़ती तलिबान प्रशासन में, डरती लड़की नहिं वीर मलाला ।।

Saturday, 13 October 2012

उस नगरी का ही ध्वंश करे, जो पाक निगाहें झाँक रही-

 टुकड़े टुकड़े में शर्म बटी, लज्जा छुपछुप कर ताक रही ।
इन महा-घुटाले-बाजों की, रँगदारों की  गुरु धाक रही ।

मेरी कथनी पर शर्म नहीं, अपनी करनी पर शर्म कहाँ-
काले-धन से नित बढ़ा करे, सुरसा जस इनकी नाक रही ।

जब मौत भूख से हो जाती, मर गए पडोसी-घर के सब
 मुंह पर आँचल धर करके शव, तब अन्नपूर्णा ताक रही ।

नक्सल मरते या मार रहे, नित प्यार मरे व्यभिचार रहे-
अब कहाँ शर्म इनको आती, मानवता ही बस  कांख रही ।

गर्व-राष्ट्र को  तब होगा,  जब अफजल सा कोई आके-
उस नगरी का ही ध्वंश करे,  जो पाक निगाहें झाँक रही ।।

Friday, 12 October 2012

तालिबानी फरमान न मानने वाली छात्रा बिटिया मलाला को समर्पित -



सुंदरी सवैया

उगती जब नागफनी दिल में, मरुभूमि बबूल समूल सँभाला ।

बरसों बरसात नहीं पहुँची, धरती जलती अति दाहक ज्वाला ।

उठती जब गर्म हवा तल से, दस मंजिल हो भरमात कराला ।

पढ़ती तलिबान प्रशासन में, डरती लड़की नहीं वीर मलाला ।।



 मत्तगयन्द सवैया 
 विषकुम्भम पयोमुखम 

बाहर की तनु सुन्दरता मनभावन रूप दिखे मतवाला । 

साज सिँगार करे सगरो छल रूप धरे उजला पट-काला ।

मीठ विनीत बनावट की पर दंभ भरी बतिया मन काला ।

दूध दिखे मुख रूप सजे पर घोर भरा घट अन्दर हाला ।। 

Wednesday, 10 October 2012

सही समय पर सही फैसला -



मत्त गयन्द सवैया का अभ्यास --

सीख रही जब वक्त सही तब निर्णय ले अपनी यह माया |
काजिन राम सिखाय गए कछु कौशल पाय गई सरमाया |

देश जले जब खूब खले, सरकार तपे नहिं हाथ हटाया  |
कोरट से जब छूट नहीं तब वापस हाथ हटा भहराया |


दुर्मिल सवैया का अभ्यास -



सलमान मियाँ अब जान दिया, जब लाख करोड़ मिला विकलांगी ।
अब जाकिर सा शुभ नाम बिका, खुरशीद दगा दबता सरवांगी ।
वडरा कचरा कल झेल गया, अखरा अपना लफड़ा एकांगी ।
असहाय शरीर रहा अकुलाय चुरा सब खाय गया हतभागी ।।

Tuesday, 9 October 2012

दुर्मिल सवैया का अभ्यास -



सलमान मियाँ अब जान दिया, जब लाख करोड़ मिला विकलांगी ।

अब जाकिर सा शुभ नाम बिका, खुरशीद दगा दबता सरवांगी ।

वडरा कचरा कल झेल गया, अखरा अपना लफड़ा एकांगी ।

असहाय शरीर रहा अकुलाय चुरा सब खाय गया हतभागी ।।



नव-कथा (60 शब्द): सब विकलांग ख़तम-पैसा हजम 

वजीर सलमान अपनी जान अपनी जमीदारिन पर न्यौछावर करने का जज्बा रखता है-
उसने दस साल पहले अपने नाना जाकिर के नाम पर एक अस्पताल खोला था विकलांगों के लिए -
जमींदार सरदार खान ने एक बोरा अशर्फियाँ दान दे दी इस भले काम के लिए- अब पता चला है कि उसकी जमीदारी में - 
सब विकलांग ख़तम-पैसा हजम ।।


निरवंशी नवाब : नव-कथा (100 शब्द)

नजफगढ़ के नवाब गुलाब गोदी गुरिल्ला युद्ध में मारे गए । शहजादी परीजाद की शादी रुहेले सरदार रोबे खान से हुई ही थी कि परीजाद की ननद की घोड़े से गिरकर मौत हो गई उसका इकलौता देवर भी पानीपत के मैदान में डूब मरासरदार के अब्बू की रहस्यमय-परिस्थिति में मौत हो चुकी है -अब सास एवं पति के साथ वह अपनी रियासत की उन्नति में लगी हुई है -दिन हजार गुनी, रात लाख गुनी |  
शायद नजफ़गढ़ पर भी शहजादी की नीयत खराब है- तभी तो 45 साल की उम्र में भी इसका भाई शहजादा असलीम कुँवारा   है -
 कुँवारे के भांजा-भांजी ही मारेंगे भाँजी- 





कुल रचना घर-द्वार को, चाटे दीमक-चाव-

 समाचार 
नगर गुलाबी का खतम, एक समूचा गाँव ।
कुल रचना घर-द्वार को, चाटे दीमक-चाव ।

चाटे दीमक-चाव, वहां हडकंप मच गया ।
होता नहीं अघाव, आदमी मगर बच गया ।

देखूं कई प्रकार, देश पर दीमक हॉवी  ।
चुकी चाट अलमस्त, आज अब नगर गुलाबी ।।

Sunday, 7 October 2012

दो समाचार- धनबाद से


 ISM धनबाद की टीचर कॉलोनी -
चिड़िया, सियार, लोमड़ी सांप प्राय: आवास के अगल बगल दीखते ही हैं-
कल रात से एक अजगर ने हमारे गैराज में डेरा डाल  रखा है-
वनकर्मियों को खबर कर दी है-

एशिया की सबसे बड़ी श्रमिक कॉलोनी भूली नगर, धनबाद 
बहु बेटे ने पिता को ताले में बंद किया -
आज आठ दिन बाद पुलिस ने दरवाजा तोडा ।।



Saturday, 6 October 2012

ई-कचड़ा से *ईति की, दिखे विश्व में भीति-

कूड़ा-कचरा हर गली, चौराहों पर ढेर ।
घर में क्या कुछ कम पड़ा, ई-कचड़ा का फेर ।
ई-कचड़ा का फेर, फेर के नया खरीदें ।
निर्माता निपटाय, होंय ना कहीं उनींदे।
धरती रही पुकार, प्रदूषण का यह पचरा।
ई-खरदूषण रूप, दशानन कूड़ा-कचरा ।।

ई-कचड़ा से *ईति की, दिखे विश्व में भीति ।
ई से करिए ईषणा, छोड़ दीजिये प्रीति ।
छोड़ दीजिये प्रीति, बड़े जहरीले अवयव ।
कर तब तक उपयोग, करें जब तक शुभ कलरव ।
सारे विकसित देश,  डस्ट-विन हमको समझें ।
या सागर में फेंक,  सदा  कुदरत से उलझें ।
*झगड़ा 

Friday, 5 October 2012

पुत्र-पिता-पति-भ्रातृ, पडोसी प्रियतम पगला-



 
बदला युग आधुनिक अब, बढ़ा सास-बधु प्यार ।
दस वर्षों का ट्रेंड नव, शेष बहस तकरार ।

शेष बहस तकरार, शक्तियां नारीवादी ।
दी विश्वास-उभार, मस्त आधी आबादी ।

पुत्र-पिता-पति-भ्रातृ, पडोसी प्रियतम पगला
लेगी इन्हें नकार, जमाने भर का बदला ।। 

Wednesday, 3 October 2012

कोयले से आजकल हम दांतों को रगड़ते-

अपनी प्रिया को छोड़  के प्रीतम अगर गया |
नन्हा सा कैमरा कहीं चुपके से धर गया ||

आया हमारे मुल्क में   व्यापार के लिए  
सोने की चिड़िया लेके जाने किधर गया ||

रुपये की खनक गूंजती बाज़ार में अभी 
डालर के सामने मगर चेहरा उतर गया ||

बनकर मसीहा गाँव में घूमे जो माफिया ,
दस्खत कराना आज उसका सबको अखर गया ।।

कोयले से आजकल हम दांतों को रगड़ते-
राख से इस ख़ाक से कुछ तो  निखर गया ।।

Tuesday, 2 October 2012

दिन प्रतिदिन कमजोर, जुदाई कैसे सहिये -




परदेशी पुत्र से-
 
दो वर्षों में एक ही, मुलाकात जब होय ।
बीस बरस में जोड़िये, दिल कितना ले रोय ।

 दिल कितना ले रोय, उमर बावन की मेरी ।
जाने को तैयार, अधिकतम इतनी देरी ।

नियमित करिए फोन, बात कुछ करते रहिये ।
दिन प्रतिदिन कमजोर, जुदाई कैसे सहिये ??