श्वेत कनपटी तनिक सी, मुखड़ा गोल-मटोल ।
नई व्याहता दोस्त की, खिसकी अंकल बोल ।
चले चतुर चौकन्ने चौकस ।|
केश रँगा मूंछे मुड़ा, चौखाने की शर्ट |
अन्दर खींचे पेट को, अंकल करता फ्लर्ट |
मिली तवज्जो फिर तो पुरकस ||
अन्दर खींचे पेट को, अंकल करता फ्लर्ट |
मिली तवज्जो फिर तो पुरकस ||
धुर-किल्ली ढिल्ली हुई, खिल्ली रहे उड़ाय |
जरा लीक से हट चले, डगमगाय बलखाय |
रहा सालभर चालू सर्कस ||
जरा लीक से हट चले, डगमगाय बलखाय |
रहा सालभर चालू सर्कस ||
दाढ़ी मूंछ सफ़ेद सब, चश्मा लागा मोट ।
इक अम्मा बाबा कही, सांप कलेजे लोट ।
बैठ निहारूं खाली तरकस ।।
बुढापा किसी से कम थोड़े ही होता है?!...सहज हास्य की बौछार!...आभार!
ReplyDeleteअनुप्रास और हास्य ....!
ReplyDeleteचचा कहूँ, अंकल कहूँ आप कहें क्या मैं क्या कहूँ.. मज़ा आ गया बस कहूँ तो क्या कहूँ!!
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