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Thursday, 27 July 2017

रविकर की कुण्डलियाँ


बानी सुनना देखना, खुश्बू स्वाद समेत।
पाँचो पांडव बच गये, सौ सौ कौरव खेत।
सौ सौ कौरव खेत, पाप दोषों की छाया।
भीष्म द्रोण नि:शेष, अन्न पापी का खाया ।
लसा लालसा कर्ण, मरा दानी वरदानी।
अन्तर्मन श्री कृष्ण, बोलती रविकर बानी ||1||



देना हठ दरबान को, अहंकार कर पार्क |
छोड़ व्यस्तता कार में, फुरसत पे टिक-मार्क |
फुरसत पर टिक-मार्क, उलझने छोड़ो नीचे |
लिफ्ट करो उत्साह, भरोसा रिश्ते सींचे |
करो गैलरी पार, साँस लंबी भर लेना |
प्रिया खौलती द्वार, प्यार से झप्पी देना ||2||



कलाकार दोनों बड़े, रचते बुत उत्कृष्ट।
लेकिन प्रभु के बुत बुरे, करते काम निकृष्ट।
करते काम निकृष्ट, परस्पर लड़ें निरन्तर।
शिल्पी मूर्ति बनाय, रखे मंदिर के अंदर।
करते सभी प्रणाम, फहरती उच्च पताका।
रविकर तू भी देख, धरा पर असर कला का ||3||


प्रमाणित किया जाता कि प्रकाशन हेतु प्रस्तुत रचनाएँ मौलिक और अप्रकाशित हैं | --रविकर 

Wednesday, 26 July 2017

रविकर की कुण्डलियाँ

प्रमाणित किया जाता कि प्रकाशन हेतु प्रस्तुत रचनाएँ मौलिक और अप्रकाशित हैं | --रविकर 
(१)
झाड़ी में हिरणी घुसी, प्रसव काल नजदीक।
इधर शिकारी ताड़ता, उधर शेर दे छींक।
उधर शेर दे छींक, गरजते बादल छाये।
जंगल जले सुदूर, देख हिरणी घबराये।
चूक जाय बंदूक, शेर को मौत पछाड़ी। 
शुरू हुई बरसात, सुने किलकारी झाड़ी।।
(२)
डॉगी क्या गायब हुआ, पागल पुलिस विभाग।

भागदौड़ करती रही, पाये नहीं सुराग। 
पाये नहीं सुराग, मातहत भी दौड़ाये।
उसी समय इक फोन, वहाँ मुखबिर का आये।
वृद्धाश्रम की ओर, पुलिस तो झटपट भागी।
वृद्धा माँ के चरण, चाटता पाया डॉगी।।
(3)
बेटी ठिठकी द्वार पर, बैठक में रुक जाय।
लगा पराई हो गयी, पिये चाय सकुचाय। 
पिये चाय सकुचाय, आज वापस जायेगी।
रविकर बैठा पूछ, दुबारा कब आयेगी।
देखी पति की ओर , दुशाला पुन: लपेटी।
लगा पराई आज, हुई है अपनी बेटी।।
दोहा
बेटी हो जाती विदा, लेकिन सतत् निहार।
नही पराई हूँ कहे, बारम्बार पुकार।।



पहली प्रस्तुति

कुछ हास्य-कुछ व्यंग (विधाता छंद) 
(१)
चुनावी हो अगर मौसम, बड़े वादे किये जाते।
कई पूरे हुवे लेकिन, कई बिसरा दिए जाते।
किया था भेड़ से वादा मिलेगा मुफ्त में कम्बल
कतर के ऊन भेड़ो का, अभी नेता लिये जाते।।
(२)
फटे बादल चढ़ी नदियाँ बहे पुल जलजला आया।
बटे राहत डटे अफसर मगर आधा स्वयं खाया | 
अमीरों की रसोई में पकौड़े फिर तले नौकर।
शिविर में तब गरीबों ने कहीं गम, विष कहीं खाया ।।
(३)
नहीं पीता कभी पानी, रियाया को पिलाता है।
नकारे चाय भी अफसर, मगर वह जान खाता है।
नहीं वह चाय का प्यासा, कभी पानी नहीं मांगे 
मगर बिन चाय-पानी के, नहीं फाइल बढ़ाता है।।
(४)
उमर मत पूछ औरत की, बुरा वह मान जायेगी।
मरद की आय मत पूछो, उसे ना बात भायेगी।
फिदाइन यदि मरे मारे, मियाँ तुम मौन रह जाना।
धरम यदि पूछ बैठे तो, सियासत जान खायेगी।।
(५)
अभी दो वर्ष पहले ही हुआ शादीशुदा भाई।
पढ़ाई रूढ़िवादी ने बहन की बंद करवाई।
प्रसव-पीड़ा सहे पत्नी, नहीं पति जाँच करवाये
रहा वह खोजता महिला-चिकित्सक किन्तु ना पाये।।



प्रमाणित किया जाता कि प्रकाशन हेतु प्रस्तुत रचनाएँ मौलिक और अप्रकाशित हैं | --रविकर