शोक-वाटिका की ऐ सीते !
राम-लखन के तरकश रीते ||
जगह-जगह जंगल-ज्वाला , उठे धुआँ काला-काला|
प्रर्यावरण - प्रदूषण ने, खर - दूषण प्रतिपल पाला ||
कुम्भकरण-रावण जीते -
राम-लखन के तरकश रीते||
राम-लखन के तरकश रीते||
नदियों में मिलते नाले, मानव-मळ मुर्दे डाले |
'विकसित' की आपाधापी, बुद्धि पर लगते ताले||
भाष्य बांचते भगवत-गीते -
राम-लखन के तरकश रीते||
पनपे हरण - मरण उद्योग, योग - भोग - संयोग - रोग |
काम-क्रोध-मद-लोभ समेटे, भव-सागर में भटके लोग ||
मनु-नौका में लगा पलीते -
राम-लखन के तरकश रीते||
राम-लखन के तरकश रीते||
राग - द्वेष - ईर्ष्या फैले, हो रहे आज रिश्ते मैले |
पशुता भी चिल्लाये-चीखे, मानवता का दिल दहले ||
रक्त-बीज का रक्त न पीते -
राम-लखन के तरकश रीते||
राह - राह 'रविकर' रमता, मरी - मरी मिलती ममता |
जगह-जगह जल्लाद जुनूनी, भ्रूण चूर्ण कर न थमता ||
कोख नोचते कुक्कुर-चीते -
राम-लखन के तरकश रीते ||
राम-लखन के तरकश रीते ||
बहुत खूब सर!
ReplyDeleteसादर
आज का समय यही सब प्रदर्शित कर रहा है!...सुन्दर प्रस्तुति!...आभार!
ReplyDeleteवाह ... रविकर जी ... समा बाँध देते हैं आप ...
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteउम्दा !
ReplyDeleteप्रर्यावरण - प्रदूषण ने, खर - दूषण प्रतिपल पाला ||
ReplyDeleteकृपया शुद्ध रूप पर्यावरण लिख लें .आज तो उत्कृष्टता को आपने और भी शिखर पर पहुंचा दिया .
तुलसी के पत्ते सूखे हैं ,और कैक्टस आज हरे हैं ,
ReplyDeleteआज राम को भूख लगी है ,रावण के भण्डार भरें हैं .इसे आगे बढायें भाई साहब .अपनी रचना जैसा विस्तार दें .