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Monday, 30 September 2013

गैयों में आनंद, विलापें गधे दुवारे -

(1)
वारे न्यारे कब किये, कब का चारा साफ़ |
पर कोई चारा नहीं, कोर्ट करे ना माफ़ |

कोर्ट करे ना माफ़, दिखे करनी सी भरनी |
गौशाला आबाद, ,पार करले वैतरणी |

फटता अध्यादेश, कहाँ अब जाय पुकारे |
गैयों में आनंद, विलापें गधे दुवारे  |
(2)

गौशाले में गाय खुश, बछिया दिखे प्रसन्न |
बछिया के ताऊ खफा, छोड़ बैठते अन्न |


छोड़ बैठते अन्न, सदा चारा ही खाया |
पर निर्णय आसन्न, जेल उनको पहुँचाया |


करते गधे विलाप, फायदा लेने वाले |
चारा पाती गाय, हुई रौनक गौशाले ||

(old)

बो के भ्रष्टाचार जो, ले कालाधन काट |
वो ही खाए आम कुल,  बेंच गुठलियाँ हाट | 

बेंच गुठलियाँ हाट, लाट फिर से बन जाता |
जमा हुन्डियां ढेर, पुश्त फिर कई खिलाता |

क्या कर लेगा शेर, इकट्ठा गीदड़ होके |
लेते रस्ता घेर, विदेशी देशी *बोके |
*मूर्ख

Thursday, 26 September 2013

दिल्ली की ही देन, बड़े आतंकी नक्सल

नक्सल ने नेता हने, गर्म दिखे युवराज |
छत्तिसगढ़ सरकार को, कोस रहे हैं आज |

कोस रहे हैं आज, आज ही घुस आतंकी |
मारे सैनिक ढेर, नहीं बोले पर बंकी |

नहीं दिखे अब शर्म, काम नहिं करती अक्कल |
दिल्ली की ही दे, बड़े आतंकी नक्सल ||

Tuesday, 24 September 2013

बातें नीति विरुद्ध, बुद्ध पर लगा कहाने-

(1)
भटके राही लक्ष्य बिन, भट के झूठे युद्ध |
आशिक रूठे रूह से, देखूं ढोंग विशुद्ध |


देखूं ढोंग विशुद्ध, लगा सज्जन उकसाने |

बातें नीति विरुद्ध, बुद्ध पर लगा कहाने |



गा मनमाने गीत, दिखा के लटके-झटके |

मान बैठता जीत, जगत में क्यूँकर भटके ||


(2)


नारी अब अबला नहीं, कहने लगा समाज । 

है घातक हथियार से, नारि सुशोभित आज । 


नारि सुशोभित आज,  सुरक्षा करना जाने । 

रविकर पुरुष समाज, नहीं जाए उकसाने ।


लेकिन अब भी नारि, पड़े अबला पर भारी |

इक ढाती है जुल्म, तड़पती दूजी नारी ।|

Wednesday, 18 September 2013

कर अफसर बर्खास्त, वजीरे आजम आ-जम

आ जम जा कुर्सी पड़ी, सिखा विधर्मी पाठ |
वोट बैंक मजबूत कर, बढ़ा चढ़ा के ठाठ |

बढ़ा चढ़ा के ठाठ, कहीं कातिल छुड़वाए |
*जटा जाय जग माहिं, जुल्म का फल भी पाए |

फिर भी गोटी लाल, लाल का करना क्या गम |
कर अफसर बर्खास्त, वजीरे आजम आ-जम ||
*ठगा जाना / धोखे में आकर हानि उठाना

रहमत लाशों पर नहीं, रहम तलाशो व्यर्थ |
अग्गी करने से बचो, अग्गी करे अनर्थ |

अग्गी करे अनर्थ, अगाड़ी जलती तीली |
जीवन-गाड़ी ख़ाक, आग फिर लाखों लीली |

करता गलती एक, उठाये कुनबा जहमत |
रविकर रोटी सेंक, बाँटता मरहम रहमत ||


बाकी बातें बाद में, सबसे आगे वोट |
करते हमले ओट से, खर्च करोड़ों नोट | 

खर्च करोड़ों नोट, चोट पीड़ा पहुँचाये |
पीते जाते रक्त, माँस अपनों का खायें |

अग्गी करके धूर्त, दिखाते हैं चालाकी |

जाँय अंतत: हार, दिखी "पूरण" बेबाकी ||


फिर भी दिल्ली दूर है, नहीं राह आसान |
अज्ञानी खुद में रमे, परेशान विद्वान |

परेशान विद्वान, बड़े भी अपनी जिद में |
ले पहले घर देख, ताकना फिर मस्जिद में | 

डंडे से ही खेल, नहीं पायेगा गिल्ली |
आस-पास बरसात, तरसती फिर भी दिल्ली || 

(आज के राजनैतिक माहौल पर)
नीले रंग में मुहावरे हैं-


Monday, 9 September 2013

हम बेटी के बाप, हमेशा रहते चिंतित-

चिंतित मानस पटल है, विचलित होती बुद्धि |
प्रतिदिन पशुता बलवती, दुष्कर्मों में वृद्धि |

दुष्कर्मों में वृद्धि, कहाँ दुर्गा है सोई |
क्यूँ नहिं होती क्रुद्ध, जगाये उनको कोई |

कर दे माँ उपकार, दया कर दे माँ समुचित |
हम बेटी के बाप,  हमेशा रहते चिंतित ||

Friday, 6 September 2013

चल संसद की देख, चोचलेबाजी रविकर -

बाजी रविकर हारता, जब मंदा बाजार |
जार जार रोवें खड़ा, पड़ी गजब की मार |

पड़ी गजब की मार, नहीं मुद्रा हँस पाए |
चुप बैठी सरकार, हँसी जग में करवाए |

उधर सीरिया युद्ध, चीन इत बैठा घुसकर |
चल संसद की देख, चोचलेबाजी रविकर ||

Wednesday, 4 September 2013

लो सब्जी दी तौल, जेब तो रखो खोलकर-

 तोल-मोल कर व्यर्थ ही, त्योरी रहे चढ़ाय |
लेना है तो टका दो, इक तोला ही आय |

इक तोला ही आय, अन्यथा नापो रस्ता |
मँहगा आलू प्याज, रुपैया पल पल सस्ता |

लो सब्जी दी तौल, जेब तो रखो खोलकर |
झोले का क्या काम, नहीं अब तोल मोल कर ||

Tuesday, 3 September 2013

बने कान्त एकांत में, होय क्वारपन क्लांत-

(1)
नाजुक अंगों को छुवे, करे वासना शान्त |
बने कान्त एकांत में, होय क्वारपन क्लांत |

होय क्वारपन क्लांत, बुद्धि से संत अपाहिज |
बढे दरिन्दे घोर, हुआ अब भारत आजिज |

बड़ी सजा की मांग, सुरक्षा से है तालुक |
मात पिता जा जाग, परिस्थिति बेहद नाजुक |

ओसारे में बुद्धि-बल, मढ़िया में छल-दम्भ-

(1)
ओसारे में बुद्धि-बल, मढ़िया में छल-दम्भ |
नहीं किसी की खैर तब, पतन होय आरम्भ |

पतन होय आरम्भ, बुद्धि पर पड़ते ताले |
बल पर श्रद्धा-श्राप, लाज कर दिया हवाले |

तार-तार सम्बन्ध, धर्म- नैतिकता हारे |
हुआ बुद्धि-बल अन्ध, भजे रविकर ओसारे ||

(2)
माने मन की बात तो, आज मौज ही मौज |
कल की जाने राम जी, आफत आये *नौज |

आफत आये *नौज, अक्ल से काम कीजिए |
चुन रविकर सद्मार्ग, प्रतिज्ञा आज लीजिये |

रहे नियंत्रित जोश, लगा ले अक्ल दिवाने |
आगे पीछे सोच, कृत्य मत कर मनमाने ||

*ईश्वर ना करे -

खड़ी निकाले खीस, रेप वह भी तो झेले-


टला फैसला दस दफा, लगी दफाएँ बीस |
अंध-न्याय की देवि ही, खड़ी निकाले खीस |

खड़ी निकाले खीस, रेप वह भी तो झेले |
न्याय मरे प्रत्यक्ष, कोर्ट के सहे झमेले |

नाबालिग को छूट, बढ़ा है विकट हौसला |
और बढ़ेंगे रेप, खला यह टला फैसला ||

गुरु हो अर्जुन सरिस, अन्यथा बन जा छक्का-

(1)
छक्का पंजा भूलता, जाएँ छक्के छूट |
छंद-मन्त्र छलछंद जब, कूट-कर्म से लूट |

कूट-कर्म से लूट, दुष्ट का फूटे भंडा |
पाये डंडा दण्ड, बदन हो जाये कंडा |

रविकर घटे प्रताप, कीर्ति को लगता धक्का |
गुरु हो अर्जुन सरिस, अन्यथा बन जा छक्का ||

(2)
गलती का पुतला मनुज, दनुज सरिस नहिं क्रूर |
मापदण्ड दुहरे मगर, व्यवहारिक भरपूर |

व्यवहारिक भरपूर, मुखौटे पर चालाकी |
रविकर मद में चूर, चाल चल जाय बला की |

करे स्वार्थ सब सिद्ध, उमरिया जस तस ढलती |
करता अब फ़रियाद, दाल लेकिन नहिं गलती ||

आया कामुक गिद्ध, सँभालो इसे सलाखों-

लाखों अंधे भक्त-गण, करते प्रबल विरोध |
छुपता फिरता साधु-शठ, लख जन गण मन क्रोध |

लख जन गण मन क्रोध, नहीं बचने की आशा |
बना शिकार अबोध, प्रवंचक किया तमाशा |

देखे दुर्गति दुष्ट, आज से अपनी आँखों |
आया कामुक गिद्ध, सँभालो इसे सलाखों-