कामकाज में लीन है, सुध अपनी विसराय |
उत्तम प्राकृत मनुज की, ईश्वर सदा सहाय ||
कामगार की जिन्दगी, खटता बिन तकरार |
थोथे में ढूंढे ख़ुशी, मालिक का आभार ||
कामचोर कायल करे, कहीं कायली नाँय |
दूजे के श्रम पर जिए, सोय-सोय मर जाय ||
दूजे के श्रम पर जिए, सोय-सोय मर जाय ||
डूबे और डुबाय दें, ज्यों टूटे तट-बाँध ||
कामध्वज की जिन्दगी, त्याग नीर का नेह |
क्षुधित जगत पर मर मिटे, पर-हित धारी देह ||
पेटू कामाशन चहे, कामतरू के तीर |
भोजन के ही वास्ते, धारा तोंद - शरीर ||
बेहतरीन लिखे हैं सर!
ReplyDeleteमई दिवस की शुभकामनाएँ!
सादर
असली काम तो वही है जिसे आपने बताया है!
ReplyDeleteश्रमिकों को नमन !
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
ReplyDeleteबुधवारीय चर्चा-मंच पर |
charchamanch.blogspot.com
कामकाज में लीन है, सुध अपनी विसराय |
ReplyDeleteउत्तम प्राकृत मनुज की, ईश्वर सदा सहाय ||
निकृष्ट जीवन मानिए, जो होते कामांध |
डूबे और डुबाय दें, ज्यों टूटे तट-बाँध ||
रचना है रविकर जी की अति उत्कृष्ट .. (.कृपया यहाँ भी पधारें - )
कैंसर रोगसमूह से हिफाज़त करता है स्तन पान .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_01.html
हा हा !
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ReplyDeleteकामगार की जिन्दगी, खटता बिन तकरार |
ReplyDeleteथोथे में ढूंढे ख़ुशी, मालिक का आभार ||
कामचोर कायल करे, कहीं कायली नाँय |
दूजे के श्रम पर जिए, सोय-सोय मर जाय ||
sateek sarthak chintran