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Monday 30 April 2012

मिले पेट में अन्न, खेत में क्यूँकर आए-

खाएं दिन में दस दफा, बिना भूख के अन्न ।
मोटू भोजन-भट्ट का, धर्म-कर्म संपन्न ।

धर्म-कर्म संपन्न, व्यर्थ न चूहे दौड़ें
खाकर मस्त मुटाय, आलसी बने निगोड़े ।

 
 मिले पेट में अन्न, खेत में क्यूँकर आए।
नहीं रहे हैं कूद, बैठकर चूहा खाए ।।    

File:Rattus norvegicus 1.jpg

2 comments:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति .चित्रात्मकता लिए .

    कृपया यहाँ भी पधारें
    सोमवार, 30 अप्रैल 2012

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  2. हमें तो जलेबियां ही पसंद हैं...!

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