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Tuesday, 17 April 2012

प्रगति पंख को नोचता, भ्रष्टाचारी बाज-

प्रेम-क्षुदित व्याकुल जगत, मांगे प्यार अपार |
जहाँ  कहीं   देना   पड़े,   कर   देता   है   मार  ||
 
कुर्सी   के   खटमल   करें,  मोटी-चमड़ी  छेद |
मर  जाते  अफ़सोस  पर,  पी के खून सफ़ेद  ||  


 
प्रगति   पंख   को   नोचता,  भ्रष्टाचारी   बाज |
लेना-देना   क्यूँ   करे ,  सारा  सभ्य  समाज  ||



सम्बन्धों  में जब दिखे, अपने तनिक खटास |
बलि का बकरा ढूंढ़ लो,  जो   कोई   हो  पास ||  


 
प्यार बढ़े मदहोश हों,  बेशक  औरत मर्द |
मदद दूसरा क्यों करे, बढ़ जाए  जब   दर्द ??





7 comments:

  1. प्रगति पंख को नोचता, भ्रष्टाचारी बाज |
    लेना-देना क्यूँ करे , सारा सभ्य समाज ||

    यथार्थपरक दोहों के लिए बधाई...

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  2. बलि का बकरा ही सहजता से ढुंढ़ लिया जाता है!

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  3. सम्बन्धों में जब दिखे, अपने तनिक खटास |
    बलि का बकरा ढूंढ़ लो, जो कोई हो पास ||

    ऐसी ही मानसिकता दिखाई दे रही है!

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  4. हमरा पहिला आगमन, सुईकारो महाराज,
    जोड़ लिए हैं ब्लॉग में, आयेंगे कल-आज!
    आयेंगे कल-आज, जमेगी खूब हमारी,
    दोहे बरसेंगे भैया फिर बारी बारी!

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  5. कितना सच लिखा है....

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  6. वास्तव में जलेबियों से ऐसा रस टपक रहा है जो कभी उबाल लाता है तो कभी दिलोदिमाग को झकझोर कर रख देता है । इन दोहों को पढ़कर कबीर -रहीम की याद आ गई । बधाई है ।

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  7. प्रगति पंख को नोचता, भ्रष्टाचारी बाज |
    लेना-देना क्यूँ करे , सारा सभ्य समाज ||


    सम्बन्धों में जब दिखे, अपने तनिक खटास |
    बलि का बकरा ढूंढ़ लो, जो कोई हो पास ||

    bahut hi sundar prastuti Rvikar ji ...badhai sweekaren.

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