चालबाज, ठग, धूर्तराज सब, पकडे बैठे डाली - डाली |
आज बाज को काम मिला वह करता चिड़ियों की रखवाली |
गौशाला मे धामिन ने जब, सब गायों पर छान्द लगाया |
मगरमच्छ ने अपनी हद में, मछली-घर मंजूर कराया ||
घोटाले-बाजों ने ले ली, जब तिहाड़ की जिम्मेदारी |
जल्लादों ने झपटी झट से, मठ-मंदिर की कुल मुख्तारी ||
अंग-रक्षकों ने मालिक की ले ली जब से मौत-सुपारी |
लुटती राहें, करता रहबर उस रहजन की ताबेदारी ||
शीत - घरों के बोरों की रखवाली चूहों ने हथियाई |
भले - राम की नैया खेवें, टुंडे - मुंडे अंधे भाई ||
घोटाले-बाजों ने ले ली, जब तिहाड़ की जिम्मेदारी |
जल्लादों ने झपटी झट से, मठ-मंदिर की कुल मुख्तारी ||
अंग-रक्षकों ने मालिक की ले ली जब से मौत-सुपारी |
लुटती राहें, करता रहबर उस रहजन की ताबेदारी ||
शीत - घरों के बोरों की रखवाली चूहों ने हथियाई |
भले - राम की नैया खेवें, टुंडे - मुंडे अंधे भाई ||
तिलचट्टों ने तेल कुओं पर, अपनी कुत्सित नजर गढ़ाई |
कमाल की रचना है। व्यवस्था पर गहरा कटाक्ष।
ReplyDeleteबहुत सटीक है सर!
ReplyDeleteसादर
वाह!
ReplyDeleteसर्वप्रथम बैशाखी की शुभकामनाएँ और जलियाँवाला बाग के शहीदों को नमन!
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर लगाई गई है!
सूचनार्थ!
वाह,वाह!...बहुत बढ़िया!...आभार!...बैशाखी की शुभकामनाएं!
ReplyDeleteआधुनिक राजनीतिक परिदृश्य पर व्यंग्य करती अच्छी कविता।
ReplyDeleteमुझे पता नहीं था कि रविकर जलेबियाँ यहाँ पका रहा हैं
ReplyDeleteचर्चा मंच में किसी और की नमकीन परोसता जा रहा है।
Nice post
ReplyDeleteआशा है कि ब्लॉगर्स का ध्यान इस पर जाएगा और उत्पीड़न करने की भावना कमज़ोर पड़ेगी।
बहुत सामयिक, बहुत प्रासंगिक, बहुत प्रभावकारी। बधाई रविकर जी!
ReplyDeleteआनंद आ गया...हर जगह व्यवस्था...पूरी तरह ध्वस्त है...
ReplyDeleteगजबे लिखा है गुरु...!
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