गम भरा *गम-छा निचोड़ा, *अंगौछा
बीच में ही *फींच छोड़ा | * धोना
बीच में ही *फींच छोड़ा | * धोना
दर्द रिश्ते से रिसा तो,
खूबसूरत मोड़ मोड़ा |
चल न पाये दो कदम प्रिय
गिर गए गम-*गोड़ तोड़ा | *पैर
नौ दो ग्यारह हो गए-उफ़
किस तरह का जोड़ जोड़ा |
खूबसूरत मोड़ मोड़ा |
चल न पाये दो कदम प्रिय
गिर गए गम-*गोड़ तोड़ा | *पैर
नौ दो ग्यारह हो गए-उफ़
किस तरह का जोड़ जोड़ा |
आज भी घूरे खड़ा वह
राह का मगरूर रोड़ा |
धूप गम-छा क्या सुखाये-
घास का अब दोस्त घोड़ा |
इश्क की फुन्सी हुई थी
बन चुकी नासूर-फोड़ा |
घूर "रविकर" घूर ले तो
अंत उफ़ आसान थोड़ा ||
घूर = घूमने के अर्थ में बहुधा प्रयुक्त होता है भोजपुरी मे,
राह का मगरूर रोड़ा |
धूप गम-छा क्या सुखाये-
घास का अब दोस्त घोड़ा |
इश्क की फुन्सी हुई थी
बन चुकी नासूर-फोड़ा |
घूर "रविकर" घूर ले तो
अंत उफ़ आसान थोड़ा ||
घूर = घूमने के अर्थ में बहुधा प्रयुक्त होता है भोजपुरी मे,
बाह!...क्या बात है!...
ReplyDeleteघूर "रविकर" घूर ले तो
अंत उफ़ आसान थोड़ा!
कल 16/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत सुन्दर वाह!
ReplyDeleteआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 16-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-851 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बाह!...क्या बात है!...धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteक्या बात है..शुद्ध देशी चासनी में लिपटी जलेबियां....आहा....
ReplyDelete-- इसे हिन्दी गज़ल--- हज़ल/ सज़ल भी कह सकते हैं...
इश्क की फुन्सी हुई थी
ReplyDeleteबन चुकी नासूर-फोड़ा |
waah bahut khoob.....
बिलकुल अलग अंदाज़ है आपकी लेखनी का
ReplyDeleteहाँ सब कुछ लिख डाला
ReplyDeleteकुछ नहीं छोड़ता निगोड़ा।
न्याय मिलने में है माना
ReplyDeleteलग रहा है वक़्त थोड़ा.
मत सजा दीजे किसी को
मारता है वक़्त कोड़ा.
चाल सीधी हो गई अब
कान किसने है मरोड़ा.
दोस्ती करने चला था
घास से घोड़ा निगोड़ा.