ऐसे दीपक को बुझाये क्या हवा -
तूफां में भी जो सदा जलता रहा ।
हृदय-देहरी पर , हथेली ने ढका
मुश्किलों का दौर यूं टलता रहा ।
तेल की बूँदे सदा रिसती रहीं-
अस्थियाँ-चमड़ी-वसा गलता रहा ।
खून के वे आखिरी कतरे चुए -
जिनकी बदौलत दीप यह पलता रहा ।
अब अगर ईंधन चुका तो क्या करे
कब से 'रविकर' तन-बदन तलता रहा ।|
दीपक की ज्योति, बहुत प्यारी लग रही है!...सुन्दर रचना....आभार!
ReplyDeleteबहुत खूब!!
ReplyDeleteहौसले के सामने हारा हुआ
ReplyDeleteएक तूफां हाथ बस मलता रहा.
काम आया है हथेली का हुनर
वक़्त हमको बारहा छलता रहा.
सुन्दर अति सुंदर
ravikar tan badan jalta nahi talta raha...;)) behtareen!
ReplyDeleteतेल की बूँदे सदा रिसती रहीं- अस्थियाँ-चमड़ी-वसा गलता रहा ।निर्बल से लड़ाई बलवान की ,ये कहानोई है ,दिए की और तूफ़ान की .बढ़िया प्रतीक बढ़िया रचना ,बढ़िया प्रस्तुति .कृपया यहाँ भी पधारें रक्त तांत्रिक गांधिक आकर्षण है यह ,मामूली नशा नहीं
ReplyDeleteशुक्रवार, 27 अप्रैल 2012
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/04/blog-post_2612.html
मार -कुटौवल से होती है बच्चों के खानदानी अणुओं में भी टूट फूट
Posted 26th April by veerubhai
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/04/blog-post_27.html
बहुत सुन्दर दर्शन है
ReplyDeleteखून के वे आखिरी कतरे चुए -
जिनकी बदौलत दीप यह पलता रहा ।
क्या बात है बहुत उम्दा..
एक दर्शन छूपा है इन पंक्तियों में जो आध्यात्मिकता की ओर ले जाता है।
ReplyDeleteऎसे दीपक को बुझने भी ना दिया जायेगा
ReplyDeleteतेल दिया जायेगा बस इतना ही दिया जायेगा
कि जलता रह जायेगा बुझ भी ना कभी पायेगा।
ऐसे दीपक को बुझाये क्या हवा .
ReplyDeleteतूफां में भी जो सदा जलता रहा ।
दीपक वही जो आंधी में भी जलता रहे।
अच्छी ग़ज़ल।
वाह!
ReplyDeleteरवि जी, उम्दा रचना....
ReplyDeletehausle kee baat...pankho se nahi hauslon se udan hoti hai..bahtarin
ReplyDelete