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Friday, 27 April 2012

कब से 'रविकर' तन-बदन तलता रहा-

ऐसे दीपक को बुझाये क्या हवा -
तूफां में भी जो सदा जलता रहा ।


हृदय-देहरी पर , हथेली ने ढका  
मुश्किलों का दौर यूं  टलता  रहा ।


तेल की बूँदे सदा रिसती रहीं-
अस्थियाँ-चमड़ी-वसा गलता रहा ।

खून के वे आखिरी कतरे चुए -
जिनकी बदौलत दीप यह पलता रहा ।

  अब अगर ईंधन चुका तो क्या करे 
कब से 'रविकर' तन-बदन तलता रहा ।|

12 comments:

  1. दीपक की ज्योति, बहुत प्यारी लग रही है!...सुन्दर रचना....आभार!

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  2. हौसले के सामने हारा हुआ
    एक तूफां हाथ बस मलता रहा.
    काम आया है हथेली का हुनर
    वक़्त हमको बारहा छलता रहा.
    सुन्दर अति सुंदर

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  3. ravikar tan badan jalta nahi talta raha...;)) behtareen!

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  4. तेल की बूँदे सदा रिसती रहीं- अस्थियाँ-चमड़ी-वसा गलता रहा ।निर्बल से लड़ाई बलवान की ,ये कहानोई है ,दिए की और तूफ़ान की .बढ़िया प्रतीक बढ़िया रचना ,बढ़िया प्रस्तुति .कृपया यहाँ भी पधारें रक्त तांत्रिक गांधिक आकर्षण है यह ,मामूली नशा नहीं
    शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/04/blog-post_2612.html
    मार -कुटौवल से होती है बच्चों के खानदानी अणुओं में भी टूट फूट
    Posted 26th April by veerubhai
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/04/blog-post_27.html

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  5. बहुत सुन्दर दर्शन है
    खून के वे आखिरी कतरे चुए -
    जिनकी बदौलत दीप यह पलता रहा ।
    क्या बात है बहुत उम्दा..

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  6. एक दर्शन छूपा है इन पंक्तियों में जो आध्यात्मिकता की ओर ले जाता है।

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  7. ऎसे दीपक को बुझने भी ना दिया जायेगा
    तेल दिया जायेगा बस इतना ही दिया जायेगा
    कि जलता रह जायेगा बुझ भी ना कभी पायेगा।

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  8. ऐसे दीपक को बुझाये क्या हवा .
    तूफां में भी जो सदा जलता रहा ।

    दीपक वही जो आंधी में भी जलता रहे।
    अच्छी ग़ज़ल।

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  9. रवि जी, उम्दा रचना....

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  10. hausle kee baat...pankho se nahi hauslon se udan hoti hai..bahtarin

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