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Tuesday 10 April 2012

प्रकट करो आभार, पहन सकती जो नथुनी -

नथुनी मिली सुनार से, गाये नित गुणगान ।

भूली प्रभु को जो दिया, सुन्दर काया दान  ।

सुन्दर काया दान , नाक से नथुनी सोहे ।

सोहे सदा सुनार, भुलाई फिरती मोहे ।

रविकर नकटी होय, लगे तू इकदम भुतनी ।

प्रकट करो आभार, पहन सकती जो नथुनी ।।
http://2.bp.blogspot.com/_Q09g8aDEtNc/S-BRW4WgUKI/AAAAAAAAKxA/9E0aFcpXYl4/s1600/Shobana-Traditional-Indina-Jewllery.jpg

4 comments:

  1. आपका यह अंदाज भी भाया।

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  2. नाता नार सुनार का , ज्यों भादों की धूप
    तब तक इसे निभाइये,जब तक दमके रूप
    जब तक दमके रूप,बाद बस प्रभु ही भावे
    नथुनी जाते भूल, सभी को 'नाक' सुहावे
    ऊँची सुंदर नाक , सभी को मिले विधाता
    लम्बी पाये उम्र , नाक-नथुनी का नाता.

    मीठी - रसवंती बड़ी , मिली जलेबी प्रात
    हर दिन प्रात: कीजिये,यूँ रस के बरसात.
    यूँ रस की बरसात, साथ में गर पोहा हो
    खूब नाश्ता करें , कुँडलिया या दोहा हो
    भाव-कढ़ाही चढ़े , जले मन की अंगीठी
    मिले जलेबी प्रात , बड़ी रसवंती - मीठी.

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  3. नाता नार सुनार का , ज्यों भादों की धूप
    तब तक इसे निभाइये,जब तक दमके रूप
    जब तक दमके रूप,बाद बस प्रभु ही भावे
    नथुनी जाते भूल, सभी को 'नाक' सुहावे
    ऊँची सुंदर नाक , सभी को मिले विधाता
    लम्बी पाये उम्र , नाक-नथुनी का नाता.

    मीठी - रसवंती बड़ी , मिली जलेबी प्रात
    हर दिन प्रात: कीजिये,यूँ रस के बरसात.
    यूँ रस की बरसात, साथ में गर पोहा हो
    खूब नाश्ता करें , कुँडलिया या दोहा हो
    भाव-कढ़ाही चढ़े , जले मन की अंगीठी
    मिले जलेबी प्रात , बड़ी रसवंती - मीठी.

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  4. यह रचना अनोखी है!...सुन्दर शब्दों का अलंकार!

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