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Monday, 16 April 2012

मान ईश का खेल, गिनों कुछ दुःख की घड़ियाँ -

दुःख की घड़ियाँ गिन रहे, घड़ी - घड़ी  सरकाय ।
धीरज हिम्मत बुद्धि बल, भागे तनु विसराय ।


भागे तनु विसराय, अश्रु दिन-रात डुबोते ।
रविकर मन बहलाय, स्वयं को यूँ ना खोते ।


समय-चक्र गतिमान, घूम लाये दिन बढ़िया ।
मान ईश का खेल, गिनों कुछ दुःख की घड़ियाँ ।।

3 comments:

  1. बहुत ही बढ़िया सर!


    सादर

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  2. दुःख के क्यों दिन बीतत नाहीं ?
    दुःख के क्यों दिन बीतत नाहीं ?
    .....................................................
    जीवन कहीं भी ठाह्र्ता नहीं है ,जो न जीवन की गत पर गाये ,उसे नहीं जीने का हक़ है .

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  3. घड़ियाँ सस्ती कीमती , समय बतावें एक
    देता सुख-दुख समय ही , अल्प कभी अतिरेक
    अल्प कभी अतिरेक , एक सा समय न होता
    जो हँसता एक पल , कुछ पल बाद वो रोता
    जल कर बाँटे खुशी , बने ऐसी फुलझड़ियाँ
    दीवाली बन जाय , काश सुख दुख की घड़ियाँ.

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