दुःख की घड़ियाँ गिन रहे, घड़ी - घड़ी सरकाय ।
धीरज हिम्मत बुद्धि बल, भागे तनु विसराय ।
भागे तनु विसराय, अश्रु दिन-रात डुबोते ।
धीरज हिम्मत बुद्धि बल, भागे तनु विसराय ।
भागे तनु विसराय, अश्रु दिन-रात डुबोते ।
रविकर मन बहलाय, स्वयं को यूँ ना खोते ।
समय-चक्र गतिमान, घूम लाये दिन बढ़िया ।
मान ईश का खेल, गिनों कुछ दुःख की घड़ियाँ ।।
बहुत ही बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
दुःख के क्यों दिन बीतत नाहीं ?
ReplyDeleteदुःख के क्यों दिन बीतत नाहीं ?
.....................................................
जीवन कहीं भी ठाह्र्ता नहीं है ,जो न जीवन की गत पर गाये ,उसे नहीं जीने का हक़ है .
घड़ियाँ सस्ती कीमती , समय बतावें एक
ReplyDeleteदेता सुख-दुख समय ही , अल्प कभी अतिरेक
अल्प कभी अतिरेक , एक सा समय न होता
जो हँसता एक पल , कुछ पल बाद वो रोता
जल कर बाँटे खुशी , बने ऐसी फुलझड़ियाँ
दीवाली बन जाय , काश सुख दुख की घड़ियाँ.