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Thursday, 12 April 2012

होय कहाँ उद्धार, चलो पर-हित कुछ साधें

मरने से जीना कठिन, पर हिम्मत न हार ।
 कायर भागे कर्म से, होय कहाँ उद्धार ।  

होय कहाँ उद्धार, चलो पर-हित कुछ  साधें ।
 बनिए नहीं लबार, गाँठ जिभ्या पर बांधें ।

फैले रविकर सत्य, स्वयं पर जय करने से । 
 जियो लोक हित मित्र, मिले न कुछ मरने से ।   

3 comments:

  1. जियो लोक हित मात्र ..वाह क्या बात है !
    तुलसी बाबा भी कह गए हैं -परहित सरिस धर्म नहीं भाई !
    अरे कुछ जौनपुरी इमरतियाँ भी हों जायं :)

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  2. मरने से जीना कठिन, पर हिम्मत न हार ।100%sahmat......marna to aasan kam hai par jeena ? not a simple task....

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  3. आया जो लेकर यहाँ , वह ले जाये साथ
    तू मस्ती में जी यहाँ , खपा न अपना माथ
    खपा न अपना माथ, किये जा बस परमारथ
    जीवन है अनमोल , न करना इसे अकारथ
    जो मिलता है बाँट , साथ में क्या था लाया
    कुछ ना तेरा माल , यहाँ जो लेकर आया.

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