बरसाती चेतावनी, चूक चोचलेबाज |
डूबे चारोधाम जब, चौकन्ना हो राज |
चौकन्ना हो राज, बहाया तिनका तिनका |
गिरा प्रजा पर गाज, नहीं कुछ बिगड़ा इनका |
जल-समाधि जल-व्याधि, बहा मलबा आघाती |
इधर इंद्र उत्पात , उधर इंद्रा का नाती ||
होवे हृदयाघात यदि, नाड़ी में अवरोध ।
पर नदियाँ बाँधी गईं, बिना यथोचित शोध ।
बिना यथोचित शोध, इड़ा पिंगला सुषुम्ना ।
रहे त्रिसोता बाँध, होय क्यों जीवन गुम ना ?
अंधाधुंध विकास, पड़ी प्रायश्चित रोवे ।
भौतिक सुख की ललक, तबाही निश्चित होवे ।।
त्रिसोता = भागीरथी ,अलकनंदा और मन्दाकिनी
प्रकृति और हम एक दुसरे से जुड़े हुए हैं, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुती।
ReplyDeleteआपकी यह रचना कल मंगलवार (02-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteअब पूरा हो गया।
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ReplyDeleteजल-समाधि जल-व्याधि, बहा मलबा आघाती |
इधर इंद्र उत्पात , उधर इंद्रा का नाती ||
बड़े बांधों कथित आधुनिकता के नेहरूवीयन मंदिरों (बड़े बांधों )की पोल खोलती पर्यावरण चेतना लिए बेहतरीन रचना .ॐ शान्ति .
ReplyDeleteबड़े बांधों कथित आधुनिकता के नेहरूवीयन मंदिरों (बड़े बांधों )की पोल खोलती पर्यावरण चेतना लिए बेहतरीन रचना .ॐ शान्ति .
ati sundar :-)
ReplyDeleteसुंदर सृजन,उम्दा प्रस्तुति,,,
ReplyDeleteRECENT POST: जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें.
आज सब दब गए,इस दर्द के, पहाड़ तले
ReplyDeleteअब तो लगता है,रोते, उम्र गुज़र जायेगी !
रहा खड़ा मंदिर,दबे,मांगा जिसने त्राण
ReplyDeleteहे संहारक,क्या सिरजा,ले भक्तों के प्राण!