कुदरत रत रहती सतत, सिद्ध नियामक श्रेष्ठ ।
किन्तु नियामत लूटता, प्राणिजगत का ज्येष्ठ।
प्राणिजगत का ज्येष्ठ, निरंकुश ठेठ स्वार्थी ।
कर शोषण आखेट, भोगता मार पालथी ।
बेजा इस्तेमाल, माल का जब भी अखरत ।
देती मचा धमाल, बावली होकर कुदरत ॥
माल=वन / क्षेत्र / धन-संपत्ति / सामग्री आदि
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