नमन नमस्ते नायकों, नम नयनों नितराम-
(1)
नमन नमस्ते नायकों, नम नयनों नितराम |
क्रूर कुदरती हादसे, दे राहत निष्काम |
दे राहत निष्काम, बचाते आहत जनता |
दिए बगैर बयान, हमारा रक्षक बनता |
अमन चमन हित जान, निछावर हँसते हँसते |
भूले ना एहसान, शहीदों नमन नमस्ते -
(2)
उत्तरीय उतरे उमड़, उलथ उत्तराखंड |
कुदरत का कुत्सित कहर, देह भुगत ले दंड |
कुदरत का कुत्सित कहर, देह भुगत ले दंड |
देह भुगत ले दंड, हुवे रिश्ते बेमानी |
पानी का बुलबुला, हुआ है पानी पानी |
क्या गंगा आचमन, चमन सम्पूर्ण प्रस्तरी |
चालू राहतकार्य, उत्तराभास उत्तरी ||
उत्तराभास=अंड-बंड उत्तर / दुष्ट उत्तर
(३)
ज़िंदा लेते लूट, लाश ने जान बचाई -
खानापूरी हो चुकी, गई रसद की खेप ।
खेप गए नेता सकल, बेशर्मी भी झेंप ।
बेशर्मी भी झेंप, उचक्कों की बन आई ।
ज़िंदा लेते लूट, लाश ने जान बचाई ।
भूखे-प्यासे भटक, उठा दुनिया से दाना ।
लाशें रहीं लटक, हिमालय मुर्दाखाना ॥
(४)
सन्नाटा पसड़ा पड़ा, सड़ता हाड़ पहाड़ |
कलरव कल की बात है, गायब सिंह दहाड़ |
गायब सिंह दहाड़, ताड़ अब कारस्तानी |
कुदरत से खिलवाड़, करे फिर पानी-पानी |
सुधरो नहीं सिधार, खाय झापड़ झन्नाटा |
मद में माता मनुज, सन्न ताके सन्नाटा ||
कलरव कल की बात है, गायब सिंह दहाड़ |
गायब सिंह दहाड़, ताड़ अब कारस्तानी |
कुदरत से खिलवाड़, करे फिर पानी-पानी |
सुधरो नहीं सिधार, खाय झापड़ झन्नाटा |
मद में माता मनुज, सन्न ताके सन्नाटा ||
(५)
फेंकू का धत फोबिया, व्याधि व्यथा विकराल |
राल घोंटते गान्धिभक्त, है चुनाव का साल |
राल घोंटते गान्धिभक्त, है चुनाव का साल |
है चुनाव का साल, विदेशी दौरे छोड़े |
चले अढाई कोस, नहीं नौ दिन हैं थोड़े |
बेतरतीब विकास, गधह'रा हुल'के रेंकू |
किसका वह व्यक्तव्य, मीडिया असली फेंकू ||
श्लेष अलंकार पहचाने
गधह'रा हुल'के = बच्चे रेंकने के लिए हुलकते हैं
(६)
नंदी को देता बचा, शिव-तांडव विकराल ।
भक्ति-भृत्य खाए गए, महाकाल के गाल ।
महाकाल के गाल, महाजन गाल बजाते ।
राजनीति का खेल, आपदा रहे भुनाते ।
आहत राहत बीच, चाल चल जाते गन्दी ।
हे शिव कैसा नृत्य, बचे क्यूँ नेता नंदी ॥
सबकुछ दर्दनाक ही है ..
ReplyDeleteमहाकाल के गाल, महाजन गाल बजाते ।
ReplyDeleteराजनीति का खेल, आपदा रहे भुनाते ।
प्रिय रविकर जी ...बहुत प्रभावी और वास्तविकता के दर्शन कराती रचना ... जिम्मेदार हम ही तो है ...भयावह त्रासदी
आभार
भ्रमर ५