(1)
रथ-वाहन हन हन बहे, बहे वेग से देह ।
सड़क मार्ग अवरुद्ध कुल, बरसी घातक मेह ।
बरसी घातक मेह, अवतरण गंगा फिर से ।
कंकड़ मलबा संग, हिले नहिं शिव मंदिर से ।
करें नहीं विषपान, देखते मरता तीरथ ।
कैसे होंय प्रसन्न, सन्न हैं भक्त भगीरथ ॥
(2)
रुष्ट-त्रिसोता त्रास दी, खोले नेत्र त्रिनेत्र |
बदी सदी से कर गए, सोता पर्वत क्षेत्र |
सोता पर्वत क्षेत्र, बहाना कुचल डालना |
मरघट बनते घाट, शांत पर महाकाल ना |
शिव गंगा का रार, झेल के जग यह रोता |
नहीं किसी की खैर, त्रिलोचन रुष्ट त्रिसोता ||
त्रिसोता= गंगा जी
सटीक भाव और विचार लिए सुन्दर कुण्डलियाँ
ReplyDeletelatest post मेरी माँ ने कहा !
latest post झुमझुम कर तू बरस जा बादल।।(बाल कविता )
रुष्ट त्रिसोता ने किया,महाप्रलय संहार
ReplyDeleteबोला पंडित एक,मिला मोक्ष रुद्र के द्वार!
रथ-वाहन हन हन बहे, बहे वेग से देह
ReplyDeleteसड़क मार्ग अवरुद्ध कुल, बरसी घातक मेह ...
वाह ... हमेशा की लाजवाब छंद ... आपकी शैली कमाल है ...