अपनों का कष्ट ही अधिक रहा है ..
अपने तो हर रोज़ मारते हं
बढ़िया रविकर जी !
बहुत उम्दा,सुंदर सृजन,,,वाह !!! क्या बात है RECENT POST : अभी भी आशा है,
प्राणान्तक यह घाव, खाय कर रविकर हारे |अन्तर दिखता साफ़, आज अन्तर सिसकारे ||इसे ही कहते हैं तदानुभूति दुसरे के दुःख का सहभागी /उपभोक्ता बनना .ॐ शान्ति
अपनों का कष्ट ही अधिक रहा है ..
ReplyDeleteअपने तो हर रोज़ मारते हं
ReplyDeleteबढ़िया रविकर जी !
ReplyDeleteबहुत उम्दा,सुंदर सृजन,,,वाह !!! क्या बात है
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ReplyDeleteप्राणान्तक यह घाव, खाय कर रविकर हारे |
अन्तर दिखता साफ़, आज अन्तर सिसकारे ||
इसे ही कहते हैं तदानुभूति दुसरे के दुःख का सहभागी /उपभोक्ता बनना .ॐ शान्ति