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Tuesday, 16 July 2013

एक अकेला घाव, दिया अपनों ने मिलकर-



सिसकारे बिन सह गया, सत्तर सकल निशान |
उन घावों को था दिया, हमलावर अनजान |

हमलावर अनजान, किन्तु यह घाव भयंकर |
एक अकेला घाव, दिया अपनों ने मिलकर |

प्राणान्तक यह घाव, खाय कर रविकर हारे |
अन्तर दिखता साफ़, आज अन्तर सिसकारे ||

5 comments:

  1. अपनों का कष्ट ही अधिक रहा है ..

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  2. बहुत उम्दा,सुंदर सृजन,,,वाह !!! क्या बात है

    RECENT POST : अभी भी आशा है,

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  3. प्राणान्तक यह घाव, खाय कर रविकर हारे |
    अन्तर दिखता साफ़, आज अन्तर सिसकारे ||

    इसे ही कहते हैं तदानुभूति दुसरे के दुःख का सहभागी /उपभोक्ता बनना .ॐ शान्ति

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