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Friday, 26 July 2013

फिर भी शेष गरीब, बड़े काहिल नालायक-

लोरी कैलोरी बिना, बाल वृद्ध संघर्ष |
किन्तु गरीबी घट गई, जय हे भारतवर्ष |

जय हे भारत वर्ष, जयतु जन गन अधिनायक |
फिर भी शेष गरीब, बड़े काहिल नालायक |

कमा सकें नहिं तीस, खाय अनुदान अघोरी |
या नेता चालाक, लूटते गाकर लोरी  ||


सकते में है जिंदगी, दो सौ रहे कमाय |
कुल छह जन घर में बसे, लाल कार्ड छिन जाय | 

लाल कार्ड छिन जाय, खाय के मिड डे भोजन -
गुजर बसर कर रहे, कमे पर कल ही दो जन |

अब केवल हम चार, दाल रोटी नित छकते |
तब हम भला गरीब, बोल कैसे हो सकते ||

7 comments:

  1. बहुत सटीक और गजब.

    रामराम.

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  2. इनको कोई ये पूछे कि अगर ३४ रुपये प्रतिदिन वाला गरीब नहीं है तो फिर मिनिमम वेजेज ११५/- क्यों कर रखी है ? जनता को कौंग्रेस किस कदर बेवकूफ समझती है यह इसका एक नमूना है !

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  3. तीखा। करारा। यथार्थ।

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  4. कागज पर भोजन मिले लागे पांच रुपैये
    हम कहे दिन को रात तो कहना ही होगा भैये ।

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  5. शर्म इनको मगर,नहीं आती !

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