मोटी चमड़ी मनुज की, महाचंट मक्कार ।
कोताही कर्तव्य में, मांगे नित अधिकार ।
मांगे नित अधिकार, हुआ है आग-बबूला ।
बोये पेड़ बबूल, आम पर झूले झूला ।
दे दूजे को सीख, रखे खुद नीयत खोटी ।
रविकर इन्हें सुधार, मार के चपत *चमोटी ॥
*चाबुक
हाँ इंसान ही ऐसा जानवर है जो बिना चमोटी सुधर ही न सकता | बहुत उम्दा |
ReplyDeletewell created
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ !
सादर
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
अर्ज सुनिये