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Saturday, 9 March 2013

कोताही कर्तव्य में, मांगे नित अधिकार-

मोटी चमड़ी मनुज की, महाचंट मक्कार । 
कोताही कर्तव्य में, मांगे नित अधिकार । 

मांगे नित अधिकार,  हुआ है आग-बबूला । 
बोये पेड़ बबूल, आम पर झूले झूला । 

दे दूजे को सीख, रखे खुद नीयत खोटी । 
रविकर इन्हें सुधार, मार के चपत *चमोटी ॥ 
*चाबुक 

3 comments:

  1. हाँ इंसान ही ऐसा जानवर है जो बिना चमोटी सुधर ही न सकता | बहुत उम्दा |

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

    महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ !
    सादर

    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    अर्ज सुनिये

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