सन्देश: 31 मार्च तक ब्लॉग जगत से दूर हूँ-रविकर
शुभ-होली
बेचारा रविकर फँसा, इक टिप्पण आतंक ।
जैसे बैठा सिर मुड़ा, ओले पड़ते-लंक ।
ओले पड़ते-लंक, करुण कर गया हिमाकत ।
पहलवान हो गधा, बाप अब कहे सियासत।
बेनी जाती टूट, किंवारा खुलता सारा ।
दिखता पर्दा टाट, हुआ चारा बे-चारा ।
मुर्दा मुद्दा जिया, हिलाता देश तमिलियन
मिलियन घपले से डिगी, कहाँ कभी सरकार ।
दंगे दुर्घटना हुवे, अति-आतंकी मार ।
अति-आतंकी मार, ख़ुदकुशी कर्जा कारण ।
मँहगाई भुखमरी, आज तक नहीं निवारण ।
काला भ्रष्टाचार, जमा धन बाहर बिलियन ।
मुर्दा मुद्दा जिया, हिलाता देश तमिलियन ॥ (3)
हलके में घुस कर करे, मछुवारों का क़त्ल |
कातिल इटली जा बसे, नहीं दिखाते शक्ल |
नहीं दिखाते शक्ल, अक्ल सत्ता गुम जाए |
राजदूत पर रोब, इधर सरकार दिखाए |
यू पी ए की बॉस, डपटती खूब टहल के |
जल्दी वापस भेज, हमें ना लेना हलके ||
देश की यही हालत है!...आपने कितनी सहजतासे चित्रित की है!...बधाई!
ReplyDeleteबहुत खूब!
ReplyDeleteशुभ-होली
ReplyDeleteenjoy holidays
waiting for next post
ReplyDeletehope you enjoyed holidays
बहुत खूब गुरुवर |
ReplyDeletegazab
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