रविकर-पुंज
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Monday, 11 March 2013
काटे पादप रोज, हरेरी ज्यादा भाये-
भाये ए सी की हवा, डेंगू मच्छर दोस्त ।
फल दल पादप काटते, काटे मछली ग़ोश्त ।
काटे मछली ग़ोश्त, बने टावर के जंगल ।
टूंगे जंकी टोस्ट, रोज जंगल में मंगल ।
खाना पीना मौज, मगन मनुवा भरमाये ।
काटे पादप रोज, हरेरी ज्यादा भाये ।।
2 comments:
छोटे
11 March 2013 at 19:08
बहुत खूब!
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Rajendra kumar
11 March 2013 at 23:25
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ,आभार.
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बहुत खूब!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ,आभार.
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