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Saturday, 2 March 2013

सुगढ़ सलोनी कई, कई में सौ विकृतियाँ-

 
 


पहला पहला यंत्र है,  इस दुनिया का चाक । 
बना प्रवर्तक यंत्र का, कुम्भकार की धाक । 
कुम्भकार की धाक, पूर्वज मुनि अगस्त्य है । 
मिटटी पावक पाक, मृत्यु पर अटल सत्य हैं । 
देता कृति आकार, रचयिता सहला सहला । 
कुम्भकार भगवान्, प्रवर्तक सबसे पहला ॥ 

मिटटी रौंधे प्रेम से, करें पुंसवन कर्म । 
गढ़े घड़े के अंग कुल, अन्दर बाहर मर्म । 
अन्दर बाहर मर्म, धर्म कुल तत्व निभाएं । 
तप-तप चक चक चर्म, अग्नि अंतर दहकाए । 
बनता पात्र सुपात्र, मगर मत मारो गिट्टी । 
संस्कार दो शेष, बना दो पावन मिटटी ॥ 

 
अगस्त्य महर्षि  कुँभारन के पुरखा पहला हम मानत भैया । 
धरती पर चाक बना पहला शुभ यंतर  लेवत  आज बलैया । 
अब कुंभ दिया चुकड़ी बनते, गति चाक बनावत अग्नि पकैया ।
जस कर्म करे जस द्रव्य भरे, गति पावत ये तस नश्वर नैया ।। 

बलुई कलकी ललकी पिलकी जल-ओढ़ सजी लटरा मुलतानी ।
मकु शुष्क मिले कुछ गील सने तल कीचड़ पर्वत धुर पठरानी ।
कुल जीव बने सिर धूल चढ़े, शुभ *पीठ तजे, मनुवा मनमानी ।
मटियावत नीति मिटावत मीत, हुआ *मटिया नहिं पावत पानी ||
*देवस्थान / आसन                       *लाश


सुन्दर दोहे रच रहे, हरते मन का शोक ।
चाक चकाचक चल रहा, रे मानव मत रोक ।
रे मानव मत रोक, रचे अलबेली कृतियाँ ।
सुगढ़ सलोनी कई, कई में सौ विकृतियाँ ।
घालमेल में दक्ष, वायु जल अनल जलाकर ।
भू छोड़े नहिं अक्ष, कर्म सारे ही सुन्दर ॥



6 comments:

  1. वाह हुज़ूर वाह | मन्त्रमुग्ध कर दिया आपकी रचनाओ ने | आभार


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    Tamasha-E-Zindagi
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    धन्यवाद
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  3. अति उत्तम कुण्डलियाँ
    आपकी अभिव्यक्ति और शब्द विन्याश लाजवाब है
    latest post होली

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  4. सुन्दर जानकारी

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  5. दिनांक 06/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  6. गहन दर्शन की अभिव्यक्ति ,महोदय

    साभार

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