पहला पहला यंत्र है, इस दुनिया का चाक ।
बना प्रवर्तक यंत्र का, कुम्भकार की धाक ।
कुम्भकार की धाक, पूर्वज मुनि अगस्त्य है ।
मिटटी पावक पाक, मृत्यु पर अटल सत्य हैं ।
देता कृति आकार, रचयिता सहला सहला ।
कुम्भकार भगवान्, प्रवर्तक सबसे पहला ॥
मिटटी रौंधे प्रेम से, करें पुंसवन कर्म ।
गढ़े घड़े के अंग कुल, अन्दर बाहर मर्म ।
अन्दर बाहर मर्म, धर्म कुल तत्व निभाएं ।
तप-तप चक चक चर्म, अग्नि अंतर दहकाए ।
बनता पात्र सुपात्र, मगर मत मारो गिट्टी ।
संस्कार दो शेष, बना दो पावन मिटटी ॥
अगस्त्य महर्षि कुँभारन के पुरखा पहला हम मानत भैया ।
धरती पर चाक बना पहला शुभ यंतर लेवत आज बलैया ।
अब कुंभ दिया चुकड़ी बनते, गति चाक बनावत अग्नि पकैया ।
जस कर्म करे जस द्रव्य भरे, गति पावत ये तस नश्वर नैया ।।
जस कर्म करे जस द्रव्य भरे, गति पावत ये तस नश्वर नैया ।।
बलुई कलकी ललकी पिलकी जल-ओढ़ सजी लटरा मुलतानी ।
मकु शुष्क मिले कुछ गील सने तल कीचड़ पर्वत धुर पठरानी ।
कुल जीव बने सिर धूल चढ़े, शुभ *पीठ तजे, मनुवा मनमानी ।
मटियावत नीति मिटावत मीत, हुआ *मटिया नहिं पावत पानी ||
*देवस्थान / आसन *लाश
सुन्दर दोहे रच रहे, हरते मन का शोक ।
चाक चकाचक चल रहा, रे मानव मत रोक ।
रे मानव मत रोक, रचे अलबेली कृतियाँ ।
सुगढ़ सलोनी कई, कई में सौ विकृतियाँ ।
घालमेल में दक्ष, वायु जल अनल जलाकर ।
भू छोड़े नहिं अक्ष, कर्म सारे ही सुन्दर ॥
वाह हुज़ूर वाह | मन्त्रमुग्ध कर दिया आपकी रचनाओ ने | आभार
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ReplyDeleteधन्यवाद
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अति उत्तम कुण्डलियाँ
ReplyDeleteआपकी अभिव्यक्ति और शब्द विन्याश लाजवाब है
latest post होली
सुन्दर जानकारी
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ReplyDeleteदिनांक 06/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
गहन दर्शन की अभिव्यक्ति ,महोदय
ReplyDeleteसाभार