Followers

Monday, 4 March 2013

परम-प्रताड़क प्रेम, पड़ा रविकर मरघाटा-

सन्नाटा पसरा प्रकट, अन्तर हाहाकार । 
नैना पथराते गए,  हारे हठ-हुंकार । 

हारे हठ-हुंकार, यार हुशियार निकलता । 
करे सरहदें  पार, बढ़ाता जाय विकलता । 

परम-प्रताड़क प्रेम, पड़ा रविकर मरघाटा । 
उत उमंग उत्साह,  इधर पसरा सन्नाटा ॥ 


5 comments:

  1. अति उत्तम

    ReplyDelete
  2. गुरूजी प्रणाम |


    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

    ReplyDelete
  3. अतिसुन्दर,आभार.

    ReplyDelete
  4. बहुत सुंदर !
    सन्नाटा भगाईये
    कुछ बजाने के लिये
    खरीद लाईये !

    ReplyDelete
  5. उत्कृष्ट प्रस्तुति भाई साहब .

    ReplyDelete