(1)
लड़का कालेज छोड़ता, भाँप रिस्क आसन्न |
क्लास-मेट को हर समय, करना पड़े प्रसन्न |
क्लास-मेट को हर समय, करना पड़े प्रसन्न |
करना पड़े प्रसन्न, धौंस हर समय दिखाती |
काला चश्मा डाल, केस का भय दिखलाती |
है इसका क्या तोड़, रोज देती हैं हड़का |
लूंगा आँखे फोड़, आज बोल है लड़का ||
(2)
बेटा भूलो नीति को, काला चश्मा डाल ।
दुनिया के करते चलो, सारे कठिन सवाल ।
सारे कठिन सवाल, भोग सहमति से करना ।
सारे कठिन सवाल, भोग सहमति से करना ।
पूछ उम्र हर हाल, नहीं तो करना भरना ।
संस्कार जा भूल, पडेगा नहीं चपेटा ।
मौज करो दो साल, नहीं तू बालिग बेटा ॥
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रिया आपकी टिपण्णी का
सोलह साल की उम्र में किशोरियां शारीरिक रूप से अपूर्ण होतीं हैं .विकास का सौपान २ १ बरस है .अविवाहित किशोरी माँ पैदा होंगी इस कदम से जबकि आज परिवेश ज्यादा उघाड़ा नंगा है .एक्सपोज़र भी ज्यादा है .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ,सटीक रचना
latest postउड़ान
teeno kist eksath"अहम् का गुलाम "
वाह जी वाह | गुरुवर आज के युग में नैतिकता का कोई मूल्य नहीं | तो आप सरकार से कैसे ऐसी आशा रख सकते हैं जो वैसे भी ज़न्खों और फिरंगियों और कट्टरवादियों से भरी हुई हैं और कुछ गंदे लोगों के द्वारा नचाई जाती है |
ReplyDeleteसमसामयिक दोहे एवं घनाक्षरी...लाजवाब....यथार्थ का सटीक चित्रण...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत खूब , ऐसे कामों के तो हमारी सरकार के पास टाइम ही टाइम है। ज्यादातर ऐसे कारनामे भी इनकी ही बिगडैल औलादों के सामने आते है।
ReplyDeleteवाह खूब कही,
ReplyDeleteअच्छी खूबसूरत रचना
नैतिकता, संस्कार...
ReplyDeleteआपकी रचनाएं अमूल्य हैं कविवर !
लाजवाब , कविवर,गुरुवर,रविवर
ReplyDelete