आज पूरे प्यार से साजन सजा दो ।
उस सुनहरे ख़्वाब का पूरा पता दो ।।
रात-दिन छलती रही कोरी किताबें -
चिट्ठियां उनपर सटा के तो मजा दो ।।
तंत्र रक्षा का गया अब तेल लेने -
हर घुटाले में विपक्षी को फँसा दो ।।
लालटेनों की ख़तम बाती हुई तो
काट नारे को फटाफट लो जला दो ।।
रोज उम्मीदे लगा कर लेट जाते
मिल रहा मौका जरा बाजा बजा दो । ।
मिल रहा मौका जरा बाजा बजा दो । ।
गुरूजी तुस्सी ग्रेट हो | बहुत सुन्दर | आनंद आ गया | सादर
ReplyDeleteTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
वाह गुरुदेव श्री वाह शानदार,धारदार, लाजवाब ग़ज़ल हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteबहुत करारा व्यंग
ReplyDeletelatest postअनुभूति : कुम्भ मेला
recent postमेरे विचार मेरी अनुभूति: पिंजड़े की पंछी
बढ़िया व्यंग्य!
ReplyDelete~सादर!!!
बहुत सुन्दर वहा वहा क्या बात है अद्भुत, सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteमेरी नई रचना
खुशबू
प्रेमविरह
नक्कार खाने की तूतियां सुनाई नहीं देती..,
ReplyDeleteबंद महल की भूतनियाँ दिखाई नहीं देती.....
वाह,धारदार व्यंग्य
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