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Saturday, 16 February 2013

चॉपर अब तो तोपें कल । पश्चिम से होती हलचल ।।


 
पश्चिम से होती हलचल ।
ताप गिरे दिन-रात का, ठंडी बहे बयार ।
ओले पत्थर गिर रहे, बारिस देती मार ।।
सागर के मस्तक पर बल ।
पश्चिम में होती हलचल ।।

शीत-युद्ध सीमांतरी, हो जाता है गर्म ।
चलते गोले गोलियां, शत्रु छेदता मर्म ।।
 काटे सर करके वह छल ।
पश्चिम में होती हलचल ।।

उड़न खटोला चाहिए, सत्ता मद में चूर ।
बटे दलाली खौफ बिन, खरीदार मगरूर ।
चॉपर अब तो तोपें कल ।
पश्चिम से होती हलचल ।।

भोगवाद अब जीतता, रीते रीति-रिवाज ।
विज्ञापन से जी रहे, लुटे हर जगह लाज ।
पीते घी ओढ़े कम्बल ।
पश्चिम में होती हलचल ।।

 परम्पराएँ तोड़ता, फिर भी दकियानूस ।
तन पूरब का ढो रहा, पश्चिम मन मनहूस । 
बदले मानव अब पल पल ।
पश्चिम में होती हलचल ।।
 

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर रविकर जी | आभार

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  2. आपको और घोटू जी को देखकर मैंने भी कुछ सीखने का प्रयास किया है | आग्रह है के आप मेरे ब्लॉग पर मेरी नई पोस्ट देखने की कृपा करें |

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  3. उड़न खटोला चाहिए, सत्ता मद में चूर ।
    बटे दलाली खौफ बिन, खरीदार मगरूर ।
    चॉपर अब तो तोपें कल ।
    पश्चिम से होती हलचल ।.........बहुत सुन्दर रविकर जी
    latest postअनुभूति : प्रेम,विरह,ईर्षा

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  4. कटु सत्य गुप्ता जी | हम भी पांच वर्ष के लिए मजबूर |

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  5. बहुत ही सटीक ...सच्ची ...सामायिक.....!

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