पश्चिम से होती हलचल ।
ताप गिरे दिन-रात का, ठंडी बहे बयार ।
ओले पत्थर गिर रहे, बारिस देती मार ।।
सागर के मस्तक पर बल ।
पश्चिम में होती हलचल ।।
शीत-युद्ध सीमांतरी, हो जाता है गर्म ।
चलते गोले गोलियां, शत्रु छेदता मर्म ।।
काटे सर करके वह छल ।
पश्चिम में होती हलचल ।।
उड़न खटोला चाहिए, सत्ता मद में चूर ।
बटे दलाली खौफ बिन, खरीदार मगरूर ।
चॉपर अब तो तोपें कल ।
पश्चिम से होती हलचल ।।
भोगवाद अब जीतता, रीते रीति-रिवाज ।
विज्ञापन से जी रहे, लुटे हर जगह लाज ।
पीते घी ओढ़े कम्बल ।
पश्चिम में होती हलचल ।।
परम्पराएँ तोड़ता, फिर भी दकियानूस ।
तन पूरब का ढो रहा, पश्चिम मन मनहूस ।
बदले मानव अब पल पल ।
पश्चिम में होती हलचल ।।
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Saturday, 16 February 2013
चॉपर अब तो तोपें कल । पश्चिम से होती हलचल ।।
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पश्चिम से
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बहुत सुन्दर रविकर जी | आभार
ReplyDeleteआपको और घोटू जी को देखकर मैंने भी कुछ सीखने का प्रयास किया है | आग्रह है के आप मेरे ब्लॉग पर मेरी नई पोस्ट देखने की कृपा करें |
ReplyDeleteउड़न खटोला चाहिए, सत्ता मद में चूर ।
ReplyDeleteबटे दलाली खौफ बिन, खरीदार मगरूर ।
चॉपर अब तो तोपें कल ।
पश्चिम से होती हलचल ।.........बहुत सुन्दर रविकर जी
latest postअनुभूति : प्रेम,विरह,ईर्षा
sundar, ati sundar
ReplyDeleteकटु सत्य गुप्ता जी | हम भी पांच वर्ष के लिए मजबूर |
ReplyDeleteबहुत ही सटीक ...सच्ची ...सामायिक.....!
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