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Thursday, 14 February 2013

इसीलिए फरवरी, चुनी शुभ चौदस चौदह-




 चौदह "चौ-पाया" चपल, चौकठ चौकड़ छोड़ ।
दहकत दैया देह दुइ, दहड़ दहड़ दह जोड़ |
दहड़ दहड़ दह जोड़, फरकती फर फर फर फर |
*वरदा वर वरणीय, वरी क्या करता रविकर |
वेलेंटाइन गुरू, आप की बड़ी अनुग्रह |
इसीलिए फरवरी, चुनी शुभ चौदस चौदह ||
*कन्या

 नखत गगन पर दिख रहे, गुजर गई बरसात |
लिखी आज ही सात-ख़त, खता कर रही बात |
खता कर रही बात, लिखाती ख़त ही जाती |
बीते जब भी रात, बुझे आशा की बाती |
आओ हे घनश्याम, चुके अब स्याही रविकर |
हुई अनोखी भोर, चुके अब नखत गगन पर ||

 भैया मारे प्यार के, 'हग' मारे इंसान ।
चाकलेट दे रोज डे, देता वचन बयान ।
देता वचन बयान, मुहब्बत ना बलात हो ।
 दिखे प्यार ही प्यार, प्रेममय मुलाक़ात हो । 
कोना कोनी पार्क, चलो वन उपवन सैंया ।
जहाँ मिले ना शत्रु, नहीं बजरंगी भैया ।


 
 हर दिन तो अंग्रेजियत, मूक फिल्म अविराम |
देह-यष्टि मकु उपकरण, काम काम से काम |


काम काम से काम, मदन दन दना घूमता |
करता काम तमाम, मूर्त मद चित्र चूमता |


थैंक्स गॉड वन वीक, मौज मारे दिल छिन-छिन |
चाकलेट से रोज, प्रतिज्ञा हग दे हर दिन ||  
 लिंगन आँगन लगन, मन लिंगार्चन जाग |
आलिंगी आली जले, आग लगाता  फाग ||

आलिंगी = आलिंगन करने वाला
आली = सखी 
चाक समय का चल रहा, किन्तु आलसी लेट |
लसा-लसी का वक्त है, मिस कर जाता डेट |
मिस कर जाता डेट, भेंट मिस से नहिं होती |
कंधे से आखेट, रखे सिर रोती - धोती |
बाकी हैं दिन पाँच, घूमती बेगम मयका |
मन मयूर ले नाच, घूमता चाक समय का ||
  रोज रोज के चोचले, रोज दिया उस रोज |
रोमांचित विनिमय बदन, लेकिन बाकी डोज |

लेकिन बाकी डोज, छुई उंगलियां परस्पर |
चाकलेट का स्वाद, तृप्त कर जाता अन्तर |

वायदा कारोबार, किन्तु तब हद हो जाती |
ज्यों आलिंगन बद्ध,  टीम बजरंग सताती ||
 बहा बहाने ले गए, आना जाना तेज |
अश्रु-बहाने लग गए, रविकर रखे सहेज |

रविकर रखे सहेज, निशाने चूक रहे हैं |
धुँध-लाया परिदृश्य, शब्द भी मूक रहे हैं |

बेलेन्टाइन आज, मनाने के क्या माने |
बदले हैं अंदाज, गए वे बहा बहाने ||

खाए भंडे खार, भाड़ते प्यारी वेला ।।

वेला वेलंटाइनी,  नौ सौ पापड़ बेल ।
वेळी ढूँढी इक बला, बल्ले ठेलम-ठेल । 
Valentine's Day: Bajrang Dal apeals youths not to indulge in indecent acts in public places
बल्ले ठेलम-ठेल, बगीचे दो तन बैठे ।
बजरंगी के नाम, पहरुवे तन-तन ऐंठे।

ढर्रा छींटा-मार, हुवे न कभी दुकेला ।
भंडे खाए खार,  भाड़ते प्यारी वेला ।।

2 comments:

  1. प्रेमी पागल हो रहे ,करते नहीं विचार।
    वैलेंटाइन का चढ़ा ,चारो तरफ बुखार ।
    चारो तरफ बुखार ,खार खाते दिन दूजे ।
    कैसा ये व्यवहार ,प्यार में राह ना सूझे ।
    कहते कवि लोकेश ,शेष है जीवन सारा।
    करो सुगढ़ व्यवहार, प्यार अक्षुण हो यारा ।

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  2. सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने

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