चौदह "चौ-पाया" चपल, चौकठ चौकड़ छोड़ ।
दहकत दैया देह दुइ, दहड़ दहड़ दह जोड़ | दहड़ दहड़ दह जोड़, फरकती फर फर फर फर | *वरदा वर वरणीय, वरी क्या करता रविकर | वेलेंटाइन गुरू, आप की बड़ी अनुग्रह | इसीलिए फरवरी, चुनी शुभ चौदस चौदह || *कन्या |
नखत गगन पर दिख रहे, गुजर गई बरसात |
लिखी आज ही सात-ख़त, खता कर रही बात | खता कर रही बात, लिखाती ख़त ही जाती | बीते जब भी रात, बुझे आशा की बाती | आओ हे घनश्याम, चुके अब स्याही रविकर | हुई अनोखी भोर, चुके अब नखत गगन पर ||
भैया मारे प्यार के, 'हग' मारे इंसान ।
चाकलेट दे रोज डे, देता वचन बयान ।
देता वचन बयान, मुहब्बत ना बलात हो ।
दिखे प्यार ही प्यार, प्रेममय मुलाक़ात हो ।
कोना कोनी पार्क, चलो वन उपवन सैंया ।
जहाँ मिले ना शत्रु, नहीं बजरंगी भैया ।
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खाए भंडे खार, भाड़ते प्यारी वेला ।।
वेला वेलंटाइनी, नौ सौ पापड़ बेल ।
वेळी ढूँढी इक बला, बल्ले ठेलम-ठेल ।
बल्ले ठेलम-ठेल, बगीचे दो तन बैठे ।
बजरंगी के नाम, पहरुवे तन-तन ऐंठे।
ढर्रा छींटा-मार, हुवे न कभी दुकेला ।
भंडे खाए खार, भाड़ते प्यारी वेला ।।
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प्रेमी पागल हो रहे ,करते नहीं विचार।
ReplyDeleteवैलेंटाइन का चढ़ा ,चारो तरफ बुखार ।
चारो तरफ बुखार ,खार खाते दिन दूजे ।
कैसा ये व्यवहार ,प्यार में राह ना सूझे ।
कहते कवि लोकेश ,शेष है जीवन सारा।
करो सुगढ़ व्यवहार, प्यार अक्षुण हो यारा ।
सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने
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