Followers

Friday, 26 July 2013

वोटों की दरकार, गरीबी वोट बैंक है-

लेकर कुलकर आयकर, करती क्या सरकार |
लोकतंत्र सुकरात का, वोटों की दरकार |


वोटों की दरकार, गरीबी वोट बैंक है | 
विविध भाँति सत्कार, तंत्र में फर्स्ट-रैंक है |


दे अनुदान तमाम, मुफ्त में राशन देकर |
करते अपना नाम, रुपैया हमसे लेकर ||

फिर भी शेष गरीब, बड़े काहिल नालायक-

लोरी कैलोरी बिना, बाल वृद्ध संघर्ष |
किन्तु गरीबी घट गई, जय हे भारतवर्ष |

जय हे भारत वर्ष, जयतु जन गन अधिनायक |
फिर भी शेष गरीब, बड़े काहिल नालायक |

कमा सकें नहिं तीस, खाय अनुदान अघोरी |
या नेता चालाक, लूटते गाकर लोरी  ||


सकते में है जिंदगी, दो सौ रहे कमाय |
कुल छह जन घर में बसे, लाल कार्ड छिन जाय | 

लाल कार्ड छिन जाय, खाय के मिड डे भोजन -
गुजर बसर कर रहे, कमे पर कल ही दो जन |

अब केवल हम चार, दाल रोटी नित छकते |
तब हम भला गरीब, बोल कैसे हो सकते ||

Wednesday, 24 July 2013

बो के भ्रष्टाचार जो, ले कालाधन काट-


बो के भ्रष्टाचार जो, ले कालाधन काट |
वो ही खाए आम कुल,  बेंच गुठलियाँ हाट | 

बेंच गुठलियाँ हाट, लाट फिर से बन जाता |
जमा हुन्डियां ढेर, पुश्त फिर कई खिलाता |

क्या कर लेगा शेर, इकट्ठा गीदड़ होके |
लेते रस्ता घेर, विदेशी देशी *बोके |
*मूर्ख
 पावरटी घट ही गई , बीस फीसदी शुद्ध |
मँहगाई पर ना घटी, पावरोटियाँ क्रुद्ध |

पावरोटियाँ क्रुद्ध, पाँवड़ा पलक बिछाओ |
नव अमीर बढ़ जाँय, गीत स्वागत के गाओ |

डर्टी पिक्चर देख, लगा सत्ता कापर-टी |
रोके पैदावार, घटा देती पावरटी || 




सकते में है जिंदगी, दो सौ रहे कमाय |
कुल छह जन घर में बसे, लाल कार्ड छिन जाय | 


लाल कार्ड छिन जाय, खाय के मिड डे भोजन -
गुजर बसर कर रहे, कमे पर कल ही दो जन |


अब केवल हम चार, दाल रोटी नित छकते |
तब हम भला गरीब, बोल कैसे हो सकते ||

Tuesday, 23 July 2013

दुर्मर-दामिनि देह, दुधमुहाँ-दानव ताके-

छोरा छलता छागिका, छद्म-रूप छलछंद |
नाबालिग *नाभील रति, जुवेनियल पाबन्द |

जुवेनियल पाबन्द, महीने चन्द बिता के |
दुर्मर-दामिनि देह, दुधमुहाँ-दानव ताके-

दीदी दादी बोल, भूज छाती पर होरा |
पा कानूनी झोल, छलेगा पुन: छिछोरा ||
*स्त्रियों के कमर के नीचे का भाग

Wednesday, 17 July 2013

मुआवजा ऐलान, दुशासन साख बचाए-

  घटना पर घटना घटे, घटे नहीं सन्ताप |
थे तो लाख उपाय पर, बाँट रहे दो लाख |


बाँट रहे दो लाख, नहीं बच्चे बच पाए |
मुआवजा ऐलान, दुशासन साख बचाए |

बच्चे छोड़ें जगत, छोड़ते वे नहिं पटना  |
बके बड़ा षड्यंत्र,  विपक्षी करते घटना ||




मन्त्रालय रख तीस ठो, नीति नियम नीतीश |
धूल धूसरित हो रहे, खा कर मरते बीस |


खा कर मरते बीस, बाढ़ ने कितने खाये |

इधर धमाका होय, उधर नक्सल धमकाए |





बची रहे सरकार, फेल हो जाए तंत्रा |

लम्बी चौड़ी खीस, बनाया असली मंत्रा ||
अफरा-तफरी मच गई, खा के मिड-डे मील |
अफसर तफरी कर रहे, बीस छात्र लें लील |


बीस छात्र लें लील, ढील सत्ता की दीखे |
मुवावजा ऐलान, यही इक ढर्रा सीखे |


आने लगे बयान, पार्टियां बिफरी बिफरी |
किन्तु जा रही जान, मची है अफरा तफरी ||

Tuesday, 16 July 2013

एक अकेला घाव, दिया अपनों ने मिलकर-



सिसकारे बिन सह गया, सत्तर सकल निशान |
उन घावों को था दिया, हमलावर अनजान |

हमलावर अनजान, किन्तु यह घाव भयंकर |
एक अकेला घाव, दिया अपनों ने मिलकर |

प्राणान्तक यह घाव, खाय कर रविकर हारे |
अन्तर दिखता साफ़, आज अन्तर सिसकारे ||

Thursday, 11 July 2013

अरुण-मनीषाशीश, मिलें खुशियाँ बहुतेरी -

पुत्रीरूपी रत्न की प्राप्ति


अरुन शर्मा 'अनन्त' 

मेरी मंगल कामना, चल अब उँगली थाम |
कर्तव्यों का पालना, सीधा सा पैगाम |
सीधा सा पैगाम, ख्याल रख माँ बेटी का |
रहे स्वस्थ खुशहाल, सीख ले तुरत सलीका |
अरुण-मनीषाशीश, मिलें खुशियाँ बहुतेरी |
सुता यशस्वी होय, विनय सुन मैया मेरी ||
 

Monday, 8 July 2013

किन्तु नियामत लूटता, प्राणिजगत का ज्येष्ठ-

कुदरत रत रहती सतत, सिद्ध नियामक श्रेष्ठ ।
किन्तु नियामत लूटता, प्राणिजगत का ज्येष्ठ। 

प्राणिजगत का ज्येष्ठ, निरंकुश ठेठ स्वार्थी ।
कर शोषण आखेट, भोगता मार पालथी ।

बेजा  इस्तेमाल, माल का जब भी अखरत ।
 देती मचा धमाल, बावली होकर कुदरत ॥

माल=वन / क्षेत्र / धन-संपत्ति / सामग्री आदि

Thursday, 4 July 2013

कैसे होंय प्रसन्न, सन्न हैं भक्त भगीरथ-

 (1)
रथ-वाहन हन हन बहे, बहे वेग से देह ।
सड़क मार्ग अवरुद्ध कुल, बरसी घातक मेह ।

बरसी घातक मेह, अवतरण गंगा फिर से ।
कंकड़ मलबा संग, हिले नहिं शिव मंदिर से ।

 करें नहीं विषपान, देखते मरता तीरथ ।
कैसे होंय प्रसन्न, सन्न हैं भक्त भगीरथ ॥

(2)
रुष्ट-त्रिसोता त्रास दी, खोले नेत्र त्रिनेत्र |
बदी सदी से कर गए, सोता पर्वत क्षेत्र |

सोता पर्वत क्षेत्र, बहाना कुचल डालना |
मरघट बनते घाट, शांत पर महाकाल ना |

शिव गंगा का रार, झेल के जग यह रोता |
नहीं किसी की खैर, त्रिलोचन रुष्ट त्रिसोता ||

त्रिसोता= गंगा जी

Monday, 1 July 2013

इधर इंद्र उत्पात , उधर इंद्रा का नाती -

बरसाती चेतावनी,  चूक चोचलेबाज |
डूबे चारोधाम जब, चौकन्ना हो राज |

चौकन्ना हो राज, बहाया तिनका तिनका |
गिरा प्रजा पर गाज, नहीं कुछ बिगड़ा इनका |

जल-समाधि जल-व्याधि, बहा मलबा आघाती |
इधर इंद्र उत्पात , उधर इंद्रा का नाती ||


होवे हृदयाघात यदि, नाड़ी में अवरोध ।
पर नदियाँ बाँधी गईं, बिना यथोचित शोध ।

बिना यथोचित शोध, इड़ा पिंगला सुषुम्ना ।
रहे त्रिसोता बाँध, होय क्यों जीवन गुम ना ?

अंधाधुंध विकास, पड़ी प्रायश्चित रोवे ।
भौतिक सुख की ललक, तबाही निश्चित होवे ।।
त्रिसोता = भागीरथी ,अलकनंदा और मन्दाकिनी