कमल का तालाब
देवेन्द्र पाण्डेय
स्थानः काशी हिंदू विश्व विद्यालय
समयः 25-06-2012 की सुबह
फोटूग्राफरः देवेन्द्र पाण्डेय।
कमल-कुमुदनी से पटा, पानी पानी काम ।
घोंघे करते मस्तियाँ, मीन चुकाती दाम ।
मीन चुकाती दाम, बिगाड़े काई कीचड़ ।
रहे फिसलते रोज, काईंया पापी लीचड़ ।
किन्तु विदेही पात, नहीं संलिप्त हो रहे ।
भौरे की बारात, पतंगे धैर्य खो रहे ।।
मीन चुकाती दाम, बिगाड़े काई कीचड़ ।
ReplyDeleteबहुत खूब ...
और फिर देवेन्द्र जी की फोटोग्राफी क्या कहने
किन्तु विदेही पात, नहीं संलिप्त हो रहे ।
ReplyDeleteभौरे की बारात, पतंगे धैर्य खो रहे ।।
वाह बहुत ही सुंदर भाव संयोजन से सजी गहन भाव अभिव्यक्ति ...
किन्तु विदेही पात, नहीं संलिप्त हो रहे ।
ReplyDeleteभौरे की बारात, पतंगे धैर्य खो रहे ।।
बहुत बढ़िया काव्यात्मक अंजलि . वीरुभाई ,४३,३०९ ,सिल्वर वुड ड्राइव ,कैंटन ,मिशिगन -४८ १८८ ,यू एस ए .
.गहन भाव.. सुन्दर पंक्तियाँ ..
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत उम्दा अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteसुन्दर,रविकर भाई.
ReplyDeletewaah man khush ho gaya chitra bhi acche kavita bhi acchi ....
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