'आज की टिप्पणियाँ'
अहँकार
ढर्रा बदलेगी नहीं, रोज अड़ाये टांग ।
खांई में बच्चे सहित, ममता मार छलांग ।
'ममता' मार छलांग, भूलती मानुष माटी ।
धंसी 'मुलायम' भूमि, भागता मार गुलाटी ।
रविकर का अंदाज, लगेगा झटका कर्रा ।
बर्रा प्राकृति दर्प, बदल ना पाए ढर्रा ।।
रामगढ: सुतनुका देवदासी और देवदीन रुपदक्ष
सीता बेंगर-रामगढ़, शाळा नाट्य पुरान ।
ललित कलाओं से मिला, नव परिचय एहसान
नव परिचय एहसान, गुफा जोगीमारा की ।
प्रेम कथा उत्कीर्ण, चकित होना है बाकी ।
रंगमंच उत्कृष्ट, सुरों हित सकल सुबीता ।
मेघदूत के पृष्ट, प्रगट धरती से सीता ।।
"मौत से सब बेख़बर हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मौत से जो सौत सी हम डाह करते |
जिन्दगी की बेवजह परवाह करते |
सत्य शाश्वत एक ही रविकर समझ-
हर घडी हर सांस में क्यूँ आह भरते ??
आखर-मोती बिखरें - माहिया
ऋता शेखर मधु
मधुर गुंजन
मधुर गुंजन
वाणी हो "मधु" सी सरस, बसे हृदय में प्रीत |
चलने की चाहत रखो, खूब "ऋता" की रीत |
उगता सूरज -धुंध में
BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN
बड़ा विकट है भ्रमर के, मन का यह आक्रोश |
धुंध छटेगी शीघ्र ही, रहे सुरक्षित कोष |
रहे सुरक्षित कोष, दोष सब बने नकलची |
विज्ञापन का दौर, दिखें चीजें न सच्ची |
उहापोह चित्कार, पाप का अंत निकट है |
कैलासी नटराज, हमारा बड़ा विकट है ||
सुंदर !!
ReplyDeleteमौत से जो सौत सी हम डाह करते |
ReplyDeleteजिन्दगी की बेवजह परवाह करते |
सत्य शाश्वत एक ही रविकर समझ-
हर घडी हर सांस में क्यूँ आह भरते ??
फिर भी कितने लोग जीतें हैं यहाँ बेनामी खाते सी ज़िन्दगी ,
रचना शास्त्रीजी की अचरज से भरी ,मौत का गर खौफ हो तो क्यों बने कोई राम लाल
मूल रचना पर हावी है यह प्रस्तुति .
सबसे अलग अंदाज है आपका।
ReplyDeleteYour comments are awesome...
ReplyDeleteबढ़िया |
ReplyDeleteआभार महोदय !!
मौत से जो सौत सी हम डाह करते |
ReplyDeleteजिन्दगी की बेवजह परवाह करते |
सत्य शाश्वत एक ही रविकर समझ-
हर घडी हर सांस में क्यूँ आह भरते ??
वाणी हो "मधु" सी सरस, बसे हृदय में प्रीत |
चलने की चाहत रखो, खूब "ऋता" की रीत |
सदैव सजग अपने रविकर जी ब्लॉग प्रहरी से .
पढ़ कलाम का कलमा,ममता हुई निराश
ReplyDeleteकलम उठाए कलमी, त्यागपत्र से आस
रविकर का अंदाज, लगेगा झटका कर्रा ।
ReplyDeleteबर्रा प्राकृति दर्प, बदल ना पाए ढर्रा ।।
मानसिक रूप से कुंठित लगती है यह ममता श्री .