दोहे
सज्जन सी छवि पा गया, कर शत सत-संवाद ।
दुर्जन छवि हित किन्तु है, काफी एक विवाद ।।
आदिकाल की नग्नता, गई आज शरमाय ।
परिधानों में पापधी , नंगा-लुच्चा पाय ।।
लम्बी लम्बी बतकही, लम्बी लम्बी छोड़ ।
हँस हँस कर लम्बा हुआ, होवे पेट मरोड़ ।।
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कुण्डली
चौदह सुइयां लगी थीं, काटा गोरा श्वान ।
काली कुतिया काटती, गई चार पे मान ।
गई चार पे मान, मर्म ऐसे समझाया ।
काटे नित इक शख्स, इसी से चार लगाया ।
कहीं विदेशी नस्ल, अगरचे काटी चाटी ।
सुई लगे न एक, मुहब्बत की परिपाटी।।
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वाह क्या काटा है !
ReplyDeleteसज्जन सी छवि पा गया, कर शत सत-संवाद ।
ReplyDeleteदुर्जन छवि हित किन्तु है, काफी एक विवाद ।।
आदिकाल की नग्नता, गई आज शरमाय ।
परिधानों में पापधी , नंगा-लुच्चा पाय ।।
लम्बी लम्बी बतकही, लम्बी लम्बी छोड़ ।
हँस हँस कर लम्बा हुआ, होवे पेट मरोड़ ।।
बढ़िया प्रस्तुति है भाई साहब .तंज भी और अभिधा भी .
कुण्डली
ReplyDeleteचौदह सुइयां लगी थीं, काटा गोरा श्वान ।
काली कुतिया काटती, गई चार पे मान ।
गई चार पे मान, मर्म ऐसे समझाया ।
काटे नित इक शख्स, इसी से चार लगाया ।
कहीं विदेशी नस्ल, अगरचे काटी चाटी ।
सुई लगे न एक, मुहब्बत की परिपाटी।।
बढ़िया प्रस्तुति है भाई साहब .तंज भी और अभिधा भी .
क्या मारा है स्वानों की विदेशी नस्ल से प्यार करने वालों को .