Followers

Monday, 22 October 2012

दुर्जन छवि हित किन्तु है, काफी एक विवाद-



दोहे  
सज्जन सी छवि पा गया, कर शत सत-संवाद ।
दुर्जन छवि हित किन्तु है, काफी एक विवाद ।।

आदिकाल की नग्नता, गई आज शरमाय ।
 परिधानों में पापधी , नंगा-लुच्चा पाय ।।  

लम्बी लम्बी बतकही, लम्बी लम्बी छोड़ ।
हँस हँस कर लम्बा हुआ, होवे पेट मरोड़ ।।


 कुण्डली  
चौदह सुइयां लगी थीं, काटा गोरा श्वान ।
काली कुतिया काटती, गई चार पे मान ।
गई चार पे मान, मर्म ऐसे समझाया ।
काटे नित इक शख्स, इसी से चार लगाया ।
कहीं विदेशी नस्ल, अगरचे  काटी चाटी ।
सुई लगे न एक, मुहब्बत की परिपाटी।।

3 comments:

  1. सज्जन सी छवि पा गया, कर शत सत-संवाद ।
    दुर्जन छवि हित किन्तु है, काफी एक विवाद ।।

    आदिकाल की नग्नता, गई आज शरमाय ।
    परिधानों में पापधी , नंगा-लुच्चा पाय ।।

    लम्बी लम्बी बतकही, लम्बी लम्बी छोड़ ।
    हँस हँस कर लम्बा हुआ, होवे पेट मरोड़ ।।

    बढ़िया प्रस्तुति है भाई साहब .तंज भी और अभिधा भी .

    ReplyDelete
  2. कुण्डली
    चौदह सुइयां लगी थीं, काटा गोरा श्वान ।
    काली कुतिया काटती, गई चार पे मान ।
    गई चार पे मान, मर्म ऐसे समझाया ।
    काटे नित इक शख्स, इसी से चार लगाया ।
    कहीं विदेशी नस्ल, अगरचे काटी चाटी ।
    सुई लगे न एक, मुहब्बत की परिपाटी।।
    बढ़िया प्रस्तुति है भाई साहब .तंज भी और अभिधा भी .

    क्या मारा है स्वानों की विदेशी नस्ल से प्यार करने वालों को .

    ReplyDelete