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Wednesday, 3 October 2012

कोयले से आजकल हम दांतों को रगड़ते-

अपनी प्रिया को छोड़  के प्रीतम अगर गया |
नन्हा सा कैमरा कहीं चुपके से धर गया ||

आया हमारे मुल्क में   व्यापार के लिए  
सोने की चिड़िया लेके जाने किधर गया ||

रुपये की खनक गूंजती बाज़ार में अभी 
डालर के सामने मगर चेहरा उतर गया ||

बनकर मसीहा गाँव में घूमे जो माफिया ,
दस्खत कराना आज उसका सबको अखर गया ।।

कोयले से आजकल हम दांतों को रगड़ते-
राख से इस ख़ाक से कुछ तो  निखर गया ।।

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