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Tuesday, 2 October 2012

दिन प्रतिदिन कमजोर, जुदाई कैसे सहिये -




परदेशी पुत्र से-
 
दो वर्षों में एक ही, मुलाकात जब होय ।
बीस बरस में जोड़िये, दिल कितना ले रोय ।

 दिल कितना ले रोय, उमर बावन की मेरी ।
जाने को तैयार, अधिकतम इतनी देरी ।

नियमित करिए फोन, बात कुछ करते रहिये ।
दिन प्रतिदिन कमजोर, जुदाई कैसे सहिये ??

2 comments:

  1. दो वर्षों में एक ही, मुलाकात जब होय ।
    बीस बरस में जोड़िये, दिल कितना ले रोय ।
    बहुत सुन्दर तरीके से विछोह कथा उभरी है .ये पीर ही ऐसी है (परदेसी प्रीतम से कैसी प्रीत ,दूर रहो मनमीत ....)ram ram bhai
    ऐसी ही निस्संग स्थितियां हैं इन दिनों बुजुर्गों की .
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    मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012
    ये लगता है अनासक्त भाव की चाटुकारिता है .

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  2. कितना गिनेंगे आंसुओं को भी !
    मन भर आया !

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