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Tuesday, 9 October 2012

दुर्मिल सवैया का अभ्यास -



सलमान मियाँ अब जान दिया, जब लाख करोड़ मिला विकलांगी ।

अब जाकिर सा शुभ नाम बिका, खुरशीद दगा दबता सरवांगी ।

वडरा कचरा कल झेल गया, अखरा अपना लफड़ा एकांगी ।

असहाय शरीर रहा अकुलाय चुरा सब खाय गया हतभागी ।।



नव-कथा (60 शब्द): सब विकलांग ख़तम-पैसा हजम 

वजीर सलमान अपनी जान अपनी जमीदारिन पर न्यौछावर करने का जज्बा रखता है-
उसने दस साल पहले अपने नाना जाकिर के नाम पर एक अस्पताल खोला था विकलांगों के लिए -
जमींदार सरदार खान ने एक बोरा अशर्फियाँ दान दे दी इस भले काम के लिए- अब पता चला है कि उसकी जमीदारी में - 
सब विकलांग ख़तम-पैसा हजम ।।


निरवंशी नवाब : नव-कथा (100 शब्द)

नजफगढ़ के नवाब गुलाब गोदी गुरिल्ला युद्ध में मारे गए । शहजादी परीजाद की शादी रुहेले सरदार रोबे खान से हुई ही थी कि परीजाद की ननद की घोड़े से गिरकर मौत हो गई उसका इकलौता देवर भी पानीपत के मैदान में डूब मरासरदार के अब्बू की रहस्यमय-परिस्थिति में मौत हो चुकी है -अब सास एवं पति के साथ वह अपनी रियासत की उन्नति में लगी हुई है -दिन हजार गुनी, रात लाख गुनी |  
शायद नजफ़गढ़ पर भी शहजादी की नीयत खराब है- तभी तो 45 साल की उम्र में भी इसका भाई शहजादा असलीम कुँवारा   है -
 कुँवारे के भांजा-भांजी ही मारेंगे भाँजी- 





3 comments:

  1. वाह रविकर सर क्या बात है उम्दा

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  2. वाह...

    तीसरी पंक्ति को और कसो, हतभागी भी अखरता है ।

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  3. अच्छा प्रयास कोशिश जारी रखे,,,,

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