जिभ्या के बकवाद से, भड़के सारे दाँत |
मँहगाई के वार से, सूखे छोटी आँत ||
आँखे ताकें रोटियां, दंगा करते दाँत ।
जिभ्या पूछे जात तो, टूटे दायीं पाँत ||
मतनी कोदौं खाय के, माथा घूमें जोर |
सर-साहब मदहोश हैं, नहीं व्यर्थ झकझोर ||
हाथों के सन्ताप से, बिगड़ गए शुभ काम |
मजदूरी पावे नहीं, पड़े चुकाने दाम ||
पाँव भटकने लग पड़े, रोजी में भटकाव |
चले कमाई के लिये, छोड़-छाड़ के गाँव ||
आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज (शुक्रवार, ७ जून, २०१३) के ब्लॉग बुलेटिन - घुंघरू पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |
ReplyDeleteछुपे हुए सार्थक जज़्बातों को खूबसूरती से ब्यान करती प्रभावशाली रचना...
ReplyDeleteआँखे ताकें रोटियां, दंगा करते दाँत ।
ReplyDeleteजिभ्या पूछे जात तो, टूटे दायीं पाँत ||
dil ko chhune wala doha
पाँव भटकने लग पड़े, रोजी में भटकाव |
ReplyDeleteचले कमाई के लिये, छोड़-छाड़ के गाँव ||
- गांव उजड़ गए तो शहर कब तक बचे रहेंगे !
वाह आदरणीय गुरुदेव श्री उत्तम दोहावली वर्तमान परिस्थितियों सुन्दर चित्रण भूरि भूरि बधाई स्वीकारें. आपकी यह रचना कल शनिवार (08 -06-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteसुंदर दोहे।
ReplyDeleteसुन्दर चित्रण
ReplyDeleteआज के समाज का सुन्दर चित्रण ...काश लोग इन व्यंग्य भरे तीरों पर गौर करें ..दर्द उभर आया
ReplyDeleteजय श्री राधे
भ्रमर ५
सुंदर दोहे
ReplyDeleteदोहे में कहने लगे रविकर सारी बात ,
ReplyDeleteसुन लो भैया तप्सरा ,छोड़ जात और पात .
बढ़िया प्रस्तुति देश के हालात का तप्सरा .
पाँव भटकने लग पड़े, रोजी में भटकाव |
ReplyDeleteचले कमाई के लिये, छोड़-छाड़ के गाँव ||
बड़े सशक्त बिम्ब संजोये हैं भाव और अर्थ की शानदार लयकारी समस्वरता .क्या कहने हैं दोहों के .ॐ शान्ति .