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Thursday, 6 June 2013

आँखे ताकें रोटियां, दंगा करते दाँत

जिभ्या के बकवाद से, भड़के सारे दाँत |
मँहगाई के वार से, सूखे छोटी आँत || 

आँखे ताकें रोटियां, दंगा करते दाँत । 
जिभ्या पूछे जात तो, टूटे दायीं पाँत ||

मतनी कोदौं खाय  के, माथा घूमें जोर |
सर-साहब मदहोश हैं, नहीं व्यर्थ झकझोर ||

हाथों के सन्ताप से, बिगड़ गए शुभ काम |
मजदूरी पावे नहीं,  पड़े चुकाने दाम ||

पाँव भटकने लग पड़े, रोजी में भटकाव |
चले कमाई के लिये, छोड़-छाड़ के गाँव ||

11 comments:

  1. आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज (शुक्रवार, ७ जून, २०१३) के ब्लॉग बुलेटिन - घुंघरू पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |

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  2. छुपे हुए सार्थक जज़्बातों को खूबसूरती से ब्यान करती प्रभावशाली रचना...

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  3. आँखे ताकें रोटियां, दंगा करते दाँत ।
    जिभ्या पूछे जात तो, टूटे दायीं पाँत ||
    dil ko chhune wala doha

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  4. पाँव भटकने लग पड़े, रोजी में भटकाव |
    चले कमाई के लिये, छोड़-छाड़ के गाँव ||
    - गांव उजड़ गए तो शहर कब तक बचे रहेंगे !

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  5. वाह आदरणीय गुरुदेव श्री उत्तम दोहावली वर्तमान परिस्थितियों सुन्दर चित्रण भूरि भूरि बधाई स्वीकारें. आपकी यह रचना कल शनिवार (08 -06-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  6. सुन्दर चित्रण

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  7. आज के समाज का सुन्दर चित्रण ...काश लोग इन व्यंग्य भरे तीरों पर गौर करें ..दर्द उभर आया
    जय श्री राधे
    भ्रमर ५

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  8. सुंदर दोहे

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  9. दोहे में कहने लगे रविकर सारी बात ,

    सुन लो भैया तप्सरा ,छोड़ जात और पात .

    बढ़िया प्रस्तुति देश के हालात का तप्सरा .

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  10. पाँव भटकने लग पड़े, रोजी में भटकाव |
    चले कमाई के लिये, छोड़-छाड़ के गाँव ||

    बड़े सशक्त बिम्ब संजोये हैं भाव और अर्थ की शानदार लयकारी समस्वरता .क्या कहने हैं दोहों के .ॐ शान्ति .

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