Followers

Friday 10 August 2012

तरह तरह के प्रेम हैं, अपना अपना राग-

तरह तरह के प्रेम हैं, अपना अपना राग |
मन का कोमल भाव है, जैसे जाये जाग |

जैसे जाये जाग, वस्तु वस्तुत: नदारद |
पर बाकी सहभाग, पार कर जाए सरहद |

जड़ चेतन अवलोक, कहीं आलौकिक पावें |
लुटा रहे अविराम, लूट जैसे मन भावे |

6 comments:

  1. तरह तरह के प्रेम हैं, अपना अपना राग |
    मन का कोमल भाव है, जैसे जाये जाग |
    बढ़िया प्रस्तुति प्रेम विविधा पर .आपकी द्रुत टिपण्णी के लिए शुक्रिया .
    Shoulder ,Arm Hand Problems -The Chiropractic Approachhttp://veerubhai1947.blogspot.com/

    ReplyDelete
  2. बढ़िया प्रस्तुति प्रेम विविधा पर .आपकी द्रुत टिपण्णी के लिए शुक्रिया .
    Shoulder ,Arm Hand Problems -The Chiropractic Approachhttp://veerubhai1947.blogspot.com/

    ReplyDelete
  3. तरह तरह के प्रेम हैं सबका अपना भाव ,
    चेत सके तो चेत ले ,न चेते निर्भाव .

    ReplyDelete
  4. तरह तरह के प्रेम हैं, तरह तरह के राग
    कहीं मेघ मल्हार तो , जलते कहीं चिराग
    जलते कहीं चिराग , भाग के खेल निराले
    जीवन उसका धन्य,जो सच्चा प्रेम जगाले
    मधुरिम फिर श्रृंगार,मधुर हों गीत विरह के
    सच्चा ढूँढे प्रेम, प्रेम हैं तरह - तरह के ||

    ReplyDelete
  5. तरह तरह के प्रेम हैं, अपना अपना राग ।
    मन का कोमल भाव है, जैसे जाये जाग ।

    प्रेम सा कोमल और कुछ नहीं।

    ReplyDelete
  6. लूट जैसे मन भावे
    बढ़िया प्रस्तुति

    ReplyDelete