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Sunday, 9 September 2012

करते वे तफरीह, ढूँढती माँ को मोटर-

 मोटर में लिख घूमते, माँ का आशिर्वाद ।
जय माता दी बोलते, नित पावन अरदास ।


नित पावन अरदास, निकल माँ बाहर घर से ।
रोटी को मुहताज, कफ़न की खातिर तरसे ।


कह रविकर पगलाय, कहीं खाती माँ ठोकर ।
करते वे तफरीह, ढूँढती माँ को मोटर ।। 



4 comments:


  1. बहुत खूब !
    माँ का आशीर्वाद सही लिखते हैं
    बेच उसी माँ को पैसे गिनते हैं
    उस पैसे से कार खरीदी जाती है
    माँ को वृद्धाश्रम भी छोड़ आती है !!

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  2. क्या बात है...यही आघात है ।

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  3. बहुत सुंदर क्या बात हैं ....

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  4. bahut khari khari kahi ravi karji,par in nirlajjon ki aankhen khulen tab bat bane

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