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Sunday, 23 September 2012

परदेशी मेहमान, ढूँढ़ के मुझको लाया-

बहकावे में गैर के, ना आना नादान ।
इस पर पहला हक़ रखूँ ,  बन्दा बड़ा प्रधान । 
बन्दा बड़ा प्रधान, गधा सा सधा सधाया ।
परदेशी मेहमान, ढूँढ़ के मुझको लाया ।
घर से लेकर घाट, घुटाले मन बहलावे ।
चला डिफीसिट पाट, हमें वो ही बहकावे ।।

गिरहकटों उद्यान में, ढूँढ़ रहे क्या चीज । 
क्या पैसों के पेड़ को, किंवा उसका बीज ।
 किंवा उसका बीज, सुनो मोहन की गीता ।
जनता की यह जेब, करे है सभी सुबीता ।
हमने तो ली काट, काट कर देखो प्यारे ।
है कुबेर-भण्डार,  माल ये बड़ा डकारे ।।

मनी-प्लांट लो लूट, चलो फिर देश चराने-

देश चराने के लिए, पैसे की दरकार ।
पैसे पाने के लिए, अपनी हो सरकार ।
अपनी हो सरकार, नहीं आसान बनाना ।
सब जुगाड़ का खेल, बुला परदेशी नाना ।
नाना नया नकार, निखारे नाम पुराने ।
मनी-प्लांट लो लूट, चलो फिर देश चराने ।।

करती बंटाधार है, बंटी-बबली टीम ।
मर मरीज मौनी मिला, पक्का नीम हकीम ।
पक्का नीम हकीम, कसकता दशक घुटाला ।
ताला मुँह पर जड़ा, खड़ा मुँह बाय दिवाला ।
लूट लूट बस लूट, छूट मक्कारी खाई ।
इक्यानबे हालात, तभी तो पड़े दिखाई ।।





1 comment:

  1. करती बंटाधार है, बंटी-बबली टीम ।
    मर मरीज मौनी मिला, पक्का नीम हकीम ।
    पक्का नीम हकीम, कसकता दशक घुटाला ।
    ताला मुँह पर जड़ा, खड़ा मुँह बाय दिवाला ।
    लूट लूट बस लूट, छूट मक्कारी खाई ।
    इक्यानबे हालात, तभी तो पड़े दिखाई ।।
    आपकी अभिव्यक्ति अद्धभुत होती है ........ !!

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