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रविकर
'चित्र से काव्य तक' प्रतियोगिता अंक १८
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सींक-सिलाई कन्यका, सींक सिलाई बाँध ।
गठबंधन हो दंड से, कूड़ा-करकट साँध ।
जब पानी पोखर-हरा, कहाँ खरहरा शुद्ध ।
नलके से धो ले इसे, फिर होगा न रुद्ध ।
डेढ़ हाथ की तू सखी, छुई मुई सी बेल ।
पांच हाथ का दंड यह, कैसे लेती झेल ??
अब्बू-हार बिसार के, दब्बू-हार बुहार ।
वे तो पड़े बुखार में, खाए मैया खार ।।
कपड़ा कंघी झाड़ मत, पथ का कूड़ा झाड़ ।
टूटा तेरे जन्मते, कुल पर बड़ा पहाड़ ।।
झाड़ू थामे हाथ दो, करते दो दो हाथ ।
हाथ धो चुकी पाठ से, सफा करे कुल पाथ ।
सड़ा गला सा गटर जग, कन्या रहे सचेत ।
खुल न जाए खलु हटकि, खलु डाले ना रेत ।
करते मटियामेट शठ, नीति नियंता नोच ।
जांचे कन्या भ्रूण खलु, मारे नि:संकोच ।।
सींक-सिलाई =1. दुबली-पतली / झाड़ू की सींक
पोखर = तालाब
खरहरा = झाड़ू
रुद्ध = रुकावट
कपड़ा कंघी झाड़=पहनना -संवरना
झाड़ = सफाई करना
खलु = दुष्ट
रेत = बालू -मिटटी से तात्पर्य
रेत = रेतना / काटना
वाह,,बहुत खूब रविकर जी,,,,बधाई,,
ReplyDeleteRECENT P0ST फिर मिलने का
bahut khoob...
ReplyDeleteबधाई,
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