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Sunday, 23 September 2012

करे कर्म कन्या कठिन, किस्मत कुंद कड़ाकु-

तीसरी प्रस्तुति  

'चित्र से काव्य तक' प्रतियोगिता अंक १८ 

http://www.openbooksonline.com/

दोहे
काँव काँव काकी करे, काकचेष्टा *काकु ।
करे कर्म कन्या कठिन, किस्मत कुंद कड़ाकु ।।
*दीनता का वाक्य 

आठ आठ आंसू बहे, रोया बुक्का फाड़ ।
बोझिल बापू चल बसा, भूल पुरानी ताड़ ।।

हुई विमाता बाम तो, करती बिटिया काम ।
शुल्क नहीं शाला जमा, कट जाता है नाम ।।

रविकर बचिया फूल सी, खेली "झाड़ू-फूल" ।
झेले "झाड़ू-नारियल",  झाड़े करकट धूल ।।
 (फूल-झाड़ू -घर के अन्दर प्रयुक्त की जाती है । नारियल झाड़ू बाहर की सफाई के लिए।)
 
 बढ़नी कूचा सोहनी, कहें खरहरा लोग ।
झाड़ू झटपट झाड़ दे, यत्र-तत्र  उपयोग ।।

सोनी *सह न सोहती, बड़-सोहनी अजीब ।
**दंड *सहन करना पड़े, झाड़ू मार नसीब ।।
*यमक  
**श्लेष 


(कुंडलियां) 

 दीखे *झाड़ू गगन में,  पुच्छल रहा कहाय ।
 इक *झाड़ू सोनी लिए, उछल उछल छल जाय ।
उछल उछल छल जाय, भाग्य पर झाड़ू *फेरे ।
*फेरे का सब फेर, विमाता आँख तरेरे ।
सत्साहस सद्कर्म, पाठ जीवन के सीखे ।
पाए बिटिया लक्ष्य,  अभी मुश्किल में दीखे ।।
* फेरना /  शादी के फेरे 




3 comments:

  1. ये दौर बड़ा हरजाई है ,

    बेटियाँ यहाँ कुम्हलाई हैं ,


    मुस्टंडों की बन आई है ,

    सरकार नहीं परछाईं हैं .

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  2. ये सब ज़िन्दगी जीने की प्रेरणा दे जाते हैं।

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