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Tuesday, 11 September 2012

मेरे सपनों का भारत

सपनों का भारत दिखे, लिखे मुँगेरी लाल |
रुपिया बरसे खेत में, घर में मुर्गी दाल |
घर में मुर्गी दाल, चाल सब चलें पुरातन |
जर जमीन जंजाल, बजे हर घर में बरतन |
चचा भतीजावाद, राज भी हो अपनों का |
बझा रहे हर जंतु, यही भारत सपनों का ||


भीड़ घटे श्मशान में, हस्पताल में रोग ।
दारुण दुर्घटना घटे, सदा घटे संजोग ।
सदा घटे संजोग, भ्रूण हत्या ना होवे।
हो दहेज़ अब बंद,  कहीं कुत्ता ना रोवे ।
देखे रविकर स्वप्न, ध्वस्त दुश्मन-मनसूबे ।
सूबे सब खुशहाल, नहीं जी डी पी  डूबे ।।
 

3 comments:


  1. भीड़ घटे श्मशान में, हस्पताल में रोग ।
    दारुण दुर्घटना घटे, सदा घटे संजोग ।
    सदा घटे संजोग, भ्रूण हत्या ना होवे।
    हो दहेज़ अब बंद, कहीं कुत्ता ना रोवे ।
    देखे रविकर स्वप्न, ध्वस्त दुश्मन-मनसूबे ।
    सूबे सब खुशहाल, नहीं जी डी पी डूबे ।।
    बहुत बढ़िया रविकर जी .

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  2. अब तो सपनों में ही
    देखना सही नजर आता है
    सामने जो दिख रहा है
    वो तो सपना नजर आता है !

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  3. बहुत बढ़िया
    सपनों का भारत दिखे, लिखे मुँगेरी लाल |

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