सपनों का भारत दिखे, लिखे मुँगेरी लाल |
रुपिया बरसे खेत में, घर में मुर्गी दाल |
घर में मुर्गी दाल, चाल सब चलें पुरातन |
जर जमीन जंजाल, बजे हर घर में बरतन |
चचा भतीजावाद, राज भी हो अपनों का |
बझा रहे हर जंतु, यही भारत सपनों का ||
भीड़ घटे श्मशान में, हस्पताल में रोग ।
दारुण दुर्घटना घटे, सदा घटे संजोग ।
सदा घटे संजोग, भ्रूण हत्या ना होवे।
हो दहेज़ अब बंद, कहीं कुत्ता ना रोवे ।
देखे रविकर स्वप्न, ध्वस्त दुश्मन-मनसूबे ।
सूबे सब खुशहाल, नहीं जी डी पी डूबे ।।
ReplyDeleteभीड़ घटे श्मशान में, हस्पताल में रोग ।
दारुण दुर्घटना घटे, सदा घटे संजोग ।
सदा घटे संजोग, भ्रूण हत्या ना होवे।
हो दहेज़ अब बंद, कहीं कुत्ता ना रोवे ।
देखे रविकर स्वप्न, ध्वस्त दुश्मन-मनसूबे ।
सूबे सब खुशहाल, नहीं जी डी पी डूबे ।।
बहुत बढ़िया रविकर जी .
अब तो सपनों में ही
ReplyDeleteदेखना सही नजर आता है
सामने जो दिख रहा है
वो तो सपना नजर आता है !
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteसपनों का भारत दिखे, लिखे मुँगेरी लाल |